कमजोर डॉलर

पिछले सत्र में पहली बार 83 रुपये के लेवल को पार करने के बाद लगातार मजबूत हो रहे डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होकर 83.08 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। बाजार के जानकारों के मुताबिक आसन्न मंदी को देखते हुए निवेश जोखिम लेने से बच रहे हैं, जिससे बिकवाली बढ़ी है और रुपया लगातार कमजोर हो कमजोर डॉलर रहा है। ब्लूमबर्ग के अनुसार डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 82.9825 पर खुलने और 83.1212 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचने के बाद फिलहाल 83.0925 के लेवल कमजोर डॉलर पर ट्रेड कर रहा है। घरेलू मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रुपया छह पैसे की गिरावट के साथ 83.06 रुपये पर कारोबार कर रहा है।
'रुपया कमजोर नहीं हो रहा,डॉलर मजबूत हो रहा', निर्मला सीतारमण का बयान पूरा सच है?
"गिरता रुपया बोझ बढ़ा रहा है. सरकार ईंधन की कीमतें नियंत्रित कर रही है. ये घबराहट पैदा करने के लिए सरकार जिम्मेदार है. क्या सरकार इस जिम्मेदारी से बच सकती है?"
जरा अनुमान लगाइए ये बात किसने कही थी? ये निर्मला सीतारमण ही थीं जिन्होंने 2 सितंबर 2013 को यह ट्वीट किया था. तब वो विपक्षी दल बीजेपी की प्रवक्ता थीं. अब, वो अपनी सत्ताधारी पार्टी की वित्त मंत्री हैं और गिरते रुपया पर बयान को लेकर चर्चा में हैं. सब तरफ हाहाकार मचा हुआ है लेकिन वो अपनी ही धुन में हैं.
रुपया-डॉलर का ग्राफ क्या इशारा करता है
यहां हम आपको बता देते हैं कि पिछले हफ्ते आखिर उन्होंने क्या कहा था: “सबसे पहले, मैं इसे ऐसे देखना चाहूंगी कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा है, बल्कि डॉलर लगातार मजबूत होता जा रहा है." फिर इसी पद पर यानि कभी वित्त मंत्री रहे और अब विपक्ष के नेता कांग्रेसी पी चिदंबरम ने निर्मला सीतारमण के बयान पर प्रतिक्रिया देने में देरी नहीं की और कहा " एक उम्मीदवार या पार्टी जो कमजोर डॉलर चुनाव हारती है, वह हमेशा कहेगी. हम चुनाव नहीं हारे, लेकिन दूसरी पार्टी ने चुनाव जीता."
"मैं तकनीकी पहलू नहीं समझा रही, लेकिन यह तथ्य है कि भारत का रुपया शायद इस डॉलर की दर में बढ़ोतरी का सामना कर पा रहा है, डॉलर को मजबूत करने के पक्ष में अभी एक्सचेंज रेट है और मुझे लगता है कि भारतीय रुपये कमजोर डॉलर ने कई दूसरे इमर्जिंग इकनॉमी की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है.”
ग्लोबल इकनॉमी में डॉलर का कैसे है वर्चस्व ?
ये वो सवाल है जिनका बेहतर जवाब पॉपुलर जोक के जरिए समझा जा सकता है?
सवाल: क्या आप सिंगल हैं?
जवाब: कौन पूछ रहा है इस पर निर्भर करता है .
बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप एक्सपोर्टर हैं या फिर इंपोर्टर या फिर दोनों का मिक्स..या फिर इंपोर्टेड प्रोडक्ट के कंज्यूमर. यदि आप फ्रेंच पनीर या इतालवी ओलिव पसंद करते हैं, तो आप कमजोर डॉलर अमेरिकी डॉलर में सामान नहीं खरीद रहे होंगे, लेकिन पिछले एक साल में अमेरिकी मुद्रा की तुलना में रुपये के मूल्य में लगभग 10% की गिरावट अभी भी आपको चिंतित करेगी क्योंकि अधिकांश फॉरेन बिल अभी भी प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर डॉलर में होते हैं. अनौपचारिक रूप से, डॉलर राजा है और यह एक ऐसी चीज है जिसका सिक्का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में चलता है. यह सच है कि अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने से उस देश की तरफ पूंजी का फ्लो ज्यादा होता है और इससे डॉलर और मजबूत होता है लेकिन इस मामले में इतना ही सबकुछ नहीं है. इसके अलावा और भी बहुत कुछ है जिस पर ध्यान देना जरूरी है.
एक्सचेंज रेट और इकनॉमी में गहरा नाता
2013 में उन्होंने जो ट्वीट किए थे, आपको सिर्फ उसको देखना चाहिए जो आज के संदर्भ में भी काफी हद तक सही हैं. लेकिन अगर आप एक एक्सपोर्टर हैं, तो चीजें साफ साफ दिख सकती हैं क्योंकि बिल आप अमेरिकी डॉलर में भर रहे हैं. उदाहरण के लिए सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट जो वॉल स्ट्रीट या सिलिकॉन वैली के क्लाइंट को सेवाएं दे रहा है उसके बिल से भी सब समझ में आ जाएगा.
वास्तव में, आप तर्क दे सकते हैं कि एक हेल्दी एक्सचेंज रेट पॉलिसी ऐसी है कि यह एक्सपोर्टर्स का जोश कम नहीं करती है क्योंकि लंबे समय में, एक अर्थव्यवस्था की वैश्विक ताकत इस बात से निर्धारित होती है कि वह कितना एक्सपोर्ट कर सकती है और, विशेष रूप से नेशनल इनकम (GDP) में इसका क्या हिस्सा रहता है. कितना कम वो इंपोर्ट करते हैं ताकि व्यापार घाटा और इसके भी ज्यादा, चालू खाता घाटा यानी CAD (जिसमें रेमिटेंस और पर्यटन आय भी शामिल है) व्यापक रूप से बढ़ ना जाए.
Highlights
- रुपये की गिरावट का तीसरा कारण यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है
- इस समय एक डॉलर की कीमत 81.88 के बराबर हो गई है
- पिछले हफ्ते बुधवार को US Fed ने ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की थी
Dollar Vs Rupees: US Fed के द्वारा बढ़ाई गई ब्याज दरों का भारतीय रुपया पर बुरा असर पड़ रहा है। रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होता जा रहा है। 28 सितंबर को रुपया ऑल टाइम लो (All Time Low) पर चला गया है। इस समय एक डॉलर की कीमत 81.88 के बराबर हो गई है। आगे और कमजोर होने की उम्मीद है। बता दें, पिछले हफ्ते बुधवार को US Fed ने ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की थी, जिसका असर भारतीय शेयर मार्केट से लेकर रुपये पर देखने को मिल रहा है। रुपये में गिरावट से एक ओर जहां व्यापार घाटा बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर जरूरी सामान के दाम में बढ़ोतरी होगी। इसका दोतरफा बोझ सरकार से लेकर आम आदमी पर पड़ेगा। आईए जानते हैं कि क्यों टूट रहा है रुपया और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?
क्यों टूट रहा है रुपया
गिरावट का एक और कारण डॉलर सूचकांक का लगातार बढ़ना भी बताया जा रहा है। इस सूचकांक के तहत पौंड, यूरो, रुपया, येन जैसी दुनिया की बड़ी मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर के प्रदर्शन को देखा जाता है। सूचकांक के ऊपर होने का मतलब होता है सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती। ऐसे में बाकी मुद्राएं डॉलर के मुकाबले गिर जाती हैं।इस साल डॉलर सूचकांक में अभी तक नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिसकी बदौलत सूचकांक इस समय 20 सालों में अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है। यही वजह है कि डॉलर के आगे सिर्फ रुपया ही नहीं बल्कि यूरो की कीमत भी गिर गई है।
रुपये की गिरावट का तीसरा कारण यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है। युद्ध की वजह से तेल, गेहूं, खाद जैसे उत्पादों, जिनके रूस और यूक्रेन बड़े निर्यातक हैं, की आपूर्ति कम हो गई है और दाम बढ़ गए हैं। चूंकि भारत विशेष रूप से कच्चे तेल का बड़ा आयातक है, देश का आयात पर खर्च बहुत बढ़ गया है। आयात के लिए भुगतान डॉलर में होता है जिससे देश के अंदर डॉलरों की कमी हो जाती है और डॉलर की कीमत ऊपर चली जाती है।
रुपये में कमजोरी का क्या होगा असर
भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स आयात करता है। रुपया कमजोर होने के कारण इन वस्तुओं का आयात पर अधिक रकम चुकाना पड़ रहा है। इसके चलते भारतीय बाजार में इन वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान भी डॉलर में होता है और डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी, इसके असर से हर जरूरत की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी।
व्यापार घाटा बढ़ने का चालू खाता के घाटा (सीएडी) पर सीधा असर पड़ता है और यह भारतीय रुपये के जुझारुपन, निवेशकों की धारणाओं और व्यापक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है। चालू वित्त वर्ष में सीएडी के जीडीपी के तीन फीसदी या 105 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। आयात-निर्यात संतुलन बिगड़ने के पीछे रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से तेल और जिसों के दाम वैश्विक स्तर पर बढ़ना, चीन में कोविड पाबंदियों की वजह से आपूर्ति श्रृंखला बाधित होना और आयात की मांग बढ़ने जैसे कारण हैं। इसकी एक अन्य वजह डीजल और विमान ईधन के निर्यात पर एक जुलाई से लगाया गया अप्रत्याशित लाभ कर भी है।
क्या कहा वित्त मंत्री Nirmala Sitharaman ने?
रुपये में गिरावट आने से जुड़े एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्री ने कहा कि सबसे पहली बात, मैं इसे इस तरह नहीं देखूंगी कि रुपया फिसल रहा है बल्कि मैं यह कहना चाहूंगी कि रुपये में मजबूती आई है। डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मजबूत हो रहे डॉलर के सामने अन्य मुद्राओं का प्रदर्शन भी खराब रहा है, लेकिन मेरा ख्याल है कि अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया ने बेहतर प्रदर्शन किया है।’’ शुक्रवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 82.35 के भाव पर बंद हुआ था। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सात अक्टूबर 2022 तक 532.87 अरब डॉलर था जो एक साल पहले के 642.45 अरब डॉलर से कहीं कम है। सीतारमण ने कहा कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की मुख्य वजह अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण मूल्यांकन में बदलाव आना है। भारतीय रिजर्व बैंक भी इस बात से सहमति रखता है।
पाउंड की तुलना में रुपया कितना हुआ है मजबूत
इस समय 1 पाउंड की कीमत 92.07 रुपये के बराबर है जो दो महीने पहले 5 अगस्त को 95.91 रुपये प्रति पाउंड थी। एक महीने में भारतीय रुपया पाउंड के मुकाबले में 3.84 रुपया मजबूत हुआ है। दो महीना पहले एक यूरो की कीमत 82.17 रुपये हुआ करती थी जो आज गिरकर 80.12 रुपये प्रति यूरो हो गई है।
यूरोप और लगभग पूरी दुनिया में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण यूरोप के कई देश महंगाई का सामना कर रहे हैं। खासकर ऊर्जा क्षेत्र में रूस के तरफ से हाल ही में लिए गए नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन को पूरी तरह से बंद करने के निर्णय ने स्थिति को और भयावह बना दिया है। इस आदेश के बाद से यूरोप में गैस और तेल जैसे ऊर्जा स्रोतों की लागत में बढ़ोतरी आई है, जो EURO की वैल्यू को कम करने में एक महत्वपूर्ण भुमिका निभा रहे हैं। यूरोपीय संघ की सांख्यिकी एजेंसी द्वारा जारी किए जाने वाले आंकड़ों के अनुसार यूरोज़ोन की मुद्रास्फीति की वार्षिक दर जुलाई में बढ़कर 8.9% हो जाएगी, जो जून में 8.6% थी। बता दें, इस समय प्रति यूरो जो डॉलर की कीमत है वो पिछले 20 सालों का सबसे न्यूनतम स्तर है। अगर ये गिरावट जारी रही तो जल्द ही एक यूरो की कीमत डॉलर के बराबर हो जाएगी।
15 जुलाई 2002 को डॉलर के बराबर था यूरो
1 जनवरी 1999 को लॉन्च होने के तुरंत बाद यूरोपीय मुद्रा 1.18 डॉलर प्रति यूरो के अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन ज्यादा दिनों तक यह टिक नहीं सकी। फरवरी 2000 में यूरो की कीमत 1 डॉलर से भी कम हो गई और अक्टूबर आते-आते में 82.30 सेंट के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई थी। फिर धीरे-धीरे स्थिति में सुधार हुआ और 15 जुलाई 2002 को यूरो एक डॉलर के बराबर पहुंच गई। उसके बाद से यूरो में इतनी गिरावट नहीं देखी गई जो आज देखी जा रही है।
यूके की राजनीति से लेकर यूके की अर्थव्यवस्था में इस समय अनिश्चितता का माहौल है। हाल ही में वहां चुनाव हुए हैं। नए पीएम बनाए जाएंगे। कहा जाता है कि बाजार में अगर आप मजबूती चाहते हैं तो अनिश्चितता को दूर करना होगा। कमजोर डॉलर इसकी दूसरी और यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलना ब्रिटेन को भारी पड़ रहा है। इसका नुकसान ब्रिटेन के व्यापारियों को उठाना पड़ रहा है। उन्हें पहले की तुलना में अधिक टैक्स कमजोर डॉलर देना पड़ रहा है। पहले जब ब्रिटेन EU का हिस्सा था तब यूरोपीय यूनियन में शामिल किसी भी देश से व्यापार करने के लिए टैक्स नहीं देना पड़ता था। उससे उसकी अर्थव्यवस्था को काफी फायदा मिलता था जो अब बंद हो गया है। इस समय वहां महंगाई भी चरम पर है। लोगों को रोजगार कम मिल रही है। ये समस्या सिर्फ ब्रिटेन में ही नहीं बल्कि उसके अन्य पड़ोसी देशों में भी है।
काेरोना संकट के दौरान भी डाॅलर के मुकाबले 70 रुपये थी रुपये की कीमत
कोरोनाकाल में भी ये 70 पर ही बनी रही। हालांकि, इसके बाद इसमें तेजी से गिरावट दर्ज हुई। 30 जून 2022 तक एक डॉलर की कीमत 78.94 रुपया हो गई। संसद में पेश की गई रिपोर्ट 11 जुलाई 2022 तक के डेटा पर आधारित थी। मतलब 11 जुलाई 2022 तक एक डॉलर की कीमत 79.41 रुपया हो गई थी। अब आज की डेट यानी 20 अक्तूबर 2022 तक एक डॉलर की कीमत 83 रुपया 14 पैसे हो गई है।
बाकी पड़ोसी देशों की क्या है हालत?
भारत में एक डॉलर की कीमत अभी 82.32 रुपया है। लेकिन पड़ोसी देशों की हालत और भी अधिक खराब है। पाकिस्तान में एक डॉलर की कीमत 218.14 पाकिस्तानी रुपया है। इसी तरह श्रीलंका में एक डॉलर 365.11 श्रीलंकाई रुपए के बराबर है। चीन इस मामले में मजबूत स्थिति में है। 7.18 चीनी युआन रॅन्मिन्बी के बराबर एक यूएस डॉलर है। 131.74 नेपाली और 104.86 बांग्लादेशी रुपए के बराबर एक यूएस डॉलर है। सबसे खराब स्थिति म्यांमार के करंसी की है। म्यांमार में एक यूएस डॉलर की कीमत 2,095.81 बर्मी क्यात्सो है।
वित्त मंत्री ने क्यों कमजोर डॉलर कहा कि रुपया गिर नहीं रहा, बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा
इसे समझने के लिए हमने अर्थशास्त्र के जानकार प्रो. प्रदीप जोशी से बात की। उन्होंने कहा, 'रुपया गिरे या डॉलर मजबूत हो। बात एक ही है। हालांकि, इसके कहने का तरीका अलग है। दोनों ही मामलों में भारतीय लोगों को नुकसान होगा।' प्रो. जोशी आगे कहते हैं, 'निर्मला सीतारमण कहना चाहती हैं कि भारतीय रुपया अन्य देशों की करंसी के मुकाबले ज्यादा कमजोर नहीं हो रहा है। आंकड़े देखें तो पिछले दिनों यूरो, ब्रिटिश पाउंड, ऑस्ट्रेलियन डॉलर, कनेडियन डॉलर, सिंगापुर डॉलर, स्विस, मलेशियन और चीनी करंसी भारत के मुकाबले ज्यादा कमजोर हुईं हैं।
रुपया गिरने से कैसे होता है नुकसान
डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में कमी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर यह होता है कि इंपोर्ट बिल बढ़ जाते हैं. जब रुपये में कमजोरी आती है तो हर वह चीज जो आयात की जाती है मसलन- पेट्रोलियम पदार्थ, उर्वरक, खाद्य तेल, कोयला, सोना, रसायन, . वगैरह की कीमतों में इजाफा होता है. हम जो भी सामान विदेश से मंगवाते हैं, उसकी कीमत डॉलर में होती है. ऐसे में हमें उस डॉलर मूल्य के बराबर रुपये में पेमेंट करना होता है. डॉलर का मूल्य रुपये के मुकाबले जितना ज्यादा चढ़ेगा, देश से उतनी ही ज्यादा करेंसी आयात के लिए बाहर जाएगी. नतीजा विदेशी मुद्रा भंडार कम होने लगता है. ऐसे में देश में सामान मंगाना महंगा होता जाएगा और उसकी भरपाई के लिए उस सामान का दाम भारत के अंदर बढ़ाना पड़ेगा. RBI की कैलकुलेशन के मुताबिक, रुपये में हर 5% की गिरावट महंगाई में 0.10% से 0.15% की बढ़ोतरी करती है,.
विदेशी कर्ज पर ब्याज का बढ़ जाता है बोझ
रुपये में गिरावट का एक और बड़ा नुकसान यह होता है कि इससे विदेशी मुद्रा में लिए गए सारे कर्ज और उन पर दिए जाने वाले ब्याज में अचानक बढ़ोतरी हो जाती है. इनमें सरकार द्वारा लिए गए विदेशी लोन के अलावा सरकारी और प्राइवेट बैंकों और कंपनियों द्वारा लिए गए फॉरेन करेंसी लोन भी शामिल हैं. इसके अलावा विदेश में पढ़ाई करना भी महंगा हो जाता है.
रुपये में लगातार गिरावट से शेयर बाजार में भी उथल-पुथल मचती है. विदेशी निवेशकों का भरोसा घटता है और वह डॉलर की मजबूती को देखकर भारतीय शेयर बाजारों से पैसे निकालने लगते हैं. नतीजा शेयर बाजार नीचे आ जाते हैं. विदेशी निवेशकों के इस कदम से रुपये में कमजोरी और बढ़ने का खतरा रहता है.
रुपये को कमजोर डॉलर संभालने के चलते घट रहा विदेशी मुद्रा भंडार
हाल ही में ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अमेरिकी मुद्रा डॉलर, यूरो और येन जैसी अन्य आरक्षित मुद्राओं के मुकाबले दो दशक के उच्च स्तर पर पहुंच गई है. इसने इन मुद्राओं की होल्डिंग की डॉलर वैल्यू को कम कर दिया. इसकी वजह से दुनिया भर में विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign-Currency Reserves) में काफी तेजी से गिरावट आ रही है. भारत से लेकर चेक गणराज्य तक, कई देशों के केंद्रीय बैंकों ने अपनी-अपनी मुद्रा को समर्थन देने के लिए हस्तक्षेप किया है. भारत कमजोर डॉलर की बात करें तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7 अक्टूबर 2022 तक 532.87 अरब डॉलर था, जो एक साल पहले के 642.45 अरब डॉलर से कहीं कम है.
रुपये में कमजोरी को आम तौर पर एक्सपोर्ट/निर्यात करने वालों के लिए अच्छी खबर माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि रुपये में गिरावट होने पर विदेशी बाजार में भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की कीमत कम हो जाती है, जिससे उनकी मांग बढ़ने की उम्मीद रहती है. साथ ही डॉलर में मिलने वाले पेमेंट को रुपये में एक्सचेंज करने पर मिलने वाली रकम बढ़ जाती है. हालांकि ध्यान रहे कि अगर निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में आयातित कच्चे माल का इस्तेमाल हुआ है या जिन देशों को निर्यात किया जा रहा है, उन देशों की मुद्रा भारतीय रुपये के मुकाबले कमजोर हुई है तो रुपये में गिरावट का फायदा निर्यात में भी नहीं होता है. लेकिन ऐसे उत्पाद जिनमें आयातित कच्चे माल का इस्तेमाल न हुआ हो या और हम ऐसे किसी देश को आयात कर रहे हों जहां की मुद्रा में कमजोरी भारतीय मुद्रा की तुलना में कम हो, तो रुपये में कमजोरी का फायदा एक्सपोर्ट के मामले में होता है.
देश में कहां पहुंच चुकी है महंगाई
खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी के चलते खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर 2022 में 5 महीने के उच्चस्तर 7.4 प्रतिशत पर पहुंच गई. खुदरा मुद्रास्फीति लगातार 9वें महीने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दो से छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है. आधिकारिक कमजोर डॉलर आंकड़ों के मुताबिक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित खुदरा महंगाई सितंबर में 7.41 प्रतिशत पर पहुंच गई. यह अगस्त में 7 प्रतिशत और सितंबर, 2021 में 4.35 प्रतिशत थी. खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति इस साल सितंबर में बढ़कर 8.60 प्रतिशत हो गई, जो अगस्त में 7.62 प्रतिशत थी.
हालांकि मैन्युफैक्चरिंग प्रॉडक्ट्स की कीमतों में नरमी, खाद्य वस्तुओं और ईंधन के दाम में कमी आने से थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति (WPI or Wholesale Inflation) सितंबर में लगातार चौथे महीने घटकर 10.7 प्रतिशत पर आ गई. थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर आधारित मुद्रास्फीति इससे पिछले महीने, अगस्त में 12.41 प्रतिशत थी. यह पिछले साल सितंबर में 11.80 प्रतिशत थी. WPI इस वर्ष मई में 15.88% के कमजोर डॉलर रिकॉर्ड ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी. WPI मुद्रास्फीति में लगातार चौथे महीने गिरावट का रुख देखने को मिला है. सितंबर 2022 में लगातार 18वें महीने, यह दहाई अंकों में रही.