एक Price Gap क्यों बनता हैं?

हाल ही में जारी यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओनटेरियो की एक रिपोर्ट के मुताबिक गठिया से ग्रस्त घुटनों के इलाज में फिजियोथेरेपी, ऑथरेस्कोपी सर्जरी जितनी ही कारगर है। शोध में शामिल ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. रॉबर्ट लिचफील्ड के अनुसार फिजियोथेरेपी में दर्द की मूल वजहों को तलाशकर एक Price Gap क्यों बनता हैं? उस वजह को ही जड़ से खत्म कर दिया जाता है। मसलन यदि मांसपेशियों में खिंचाव के कारण घुटनों में दर्द है तो स्ट्रेचिंग और व्यायाम के जरिये इलाज किया जाता है, पर यदि पैरों के खराब संतुलन की वजह से दर्द हो रहा है तो फिजियोथेरेपिस्ट ऑर्थोटिक्स शू (विशेष प्रकार के जूते, जो पैरों को एक सीध में करता है) पहनने की सलाह देते हैं।
दांताें के बीच के गैप काे कम करे ये 4 घरेलू उपाय
Written by: Anju Rawat Updated at: Jul 14, 2021 12:34 IST
क्या आपके दांताें के बीच भी गैप है (Do You Have a Gap Between Your Teeth)? दांताें के बीच गैप या स्पेस काे डायस्टेमा (Diastema) कहा जाता है। डायस्टेमा कई कारणाें से हाे सकता है। इसमें सबसे प्रमुख जेनेटिक हाेता है। यानी अगर किसी के माता-पिता के दांताें के बीच गैप है, एक Price Gap क्यों बनता हैं? ताे उसके भी दांताें में स्पेस हाे सकता है। इसके अलावा दांताें की असामान्य वृद्धि, मसूड़ाें के राेग भी इसका कारण हाे सकते हैं। दांताें के बीच गैप यानी डायस्टेमा चेहरे की सुंदरता काे भी खराब करते हैं, ऐसे में इसे ठीक करना बहुत जरूरी हाेता है। एक Price Gap क्यों बनता हैं? आप चाहें ताे घर पर ही कुछ उपायाें की मदद से इसे कम कर सकते हैं।
डेंटल इंप्रेशन किट से कम करे दांताें के बीच का गैप (Dental Impression Kit Reduce or Fill Teeth Gap)
डेंटल इंप्रेशन किट का इस्तेमाल करके आप अपने दांताें के बीच के गैप काे बंद कर सकते हैं। डायस्टेमा की समस्या काे दूर करने के लिए यह एक काफी अच्छा घरेलू उपाय है। इसके उपयाेग से सामने के दांताें के बीच के गैप काे कम करने में मदद मिल सकती है। डेंटल इंप्रेशन किट में 2 ट्रे सेट, पुट्टी और इसे इस्तेमाल करने के दिशा निर्देश हाेते हैं। इसे आप आसानी से घर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। कई लाेग अपने टेड़े-मेढ़े दांताें की समस्या से भी परेशान रहते हैं, ऐसे में इस समस्या काे ठीक करना भी बहुत जरूरी हाेता है।
दांताें के बीच के गैप या स्पेस काे कम करने के लिए डेंटल बॉन्डिंग का उपयाेग करना भी लाभकारी हाे सकता है। डेंटल बॉन्डिंग में दांताें काे राल (Resin) के साथ लगाया जाता है। इसमें एक विशेष तरह की लाइट का इस्तेमाल करके इसे कठाेर बनाया जाता है। डेंटल बॉन्डिंग का उपयाेग उस स्थिति में करना फायदेमंद हाेता है, जब दांताें में दरार और गैप हाे। इसका इस्तेमाल करने पर दांत बिल्कुल सुरक्षित रहते हैं। लेकिन आप चाहें ताे इसके उपयाेग से पहले एक बार डेंटिस्ट की सलाह ले सकते हैं।
रिटेनर्स के इस्तेमाल से कम करे दांताें का गैप (Use Retainers to Reduce or Fill Teeth Gap at Home)
दांताें के गैप या डायस्टेमा की समस्या काे दूर करने के लिए आप रिटेनर्स का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। रिटेनर्स का इस्तेमाल उस स्थिति में करना लाभदायक हाेता है, जब दांताें के बीच का गैप बहुत कम या छाेटा हाेता है। इसमें दांताें में दबाव डालकर उनकी शिफ्टिंग की जाती है। इसके लिए आप अपने डॉक्टर से विशेष दिशा निर्देश ले सकते हैं। इसके इस्तेमाल से आपके दांताें के गैप काे कम करने में काफी मदद मिलेगी।
डेंटल एलिगनर्स का इस्तेमाल करके भी दांताें के बीच की दूरी या गैप काे कम कर सकते हैं। दाे दांताें के बीच की दूरी काे कम करने में डेंटल एलाइनर उपयाेगी हाे सकता है। इसके इस्तेमाल से पहले आप अपने डेंटिस्ट से जरूर जान लें। अपने दांताें काे हेल्दी रखना बेहद जरूरी हाेता है।
अगर आपके दांताें के बीच भी गैप है, ताे इन प्राकृतिक तरीकाें से अपनी इस समस्या काे दूर कर सकते हैं। लेकिन इन्हें अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। क्याेंकि जरूरी नहीं है कि सभी लाेगाें के लिए ये घरेलू उपाय काम करें। यह समस्या की गंभीरता और प्राकृतिक तरीकाें काे फॉलाे करने के तरीकाें पर निर्भर करता है। आपकाे नियमित रूप से इन तरीकाें काे फॉलाे करने से थाेड़ा बहुत फायदा मिल सकता है। लेकिन कुछ स्थितियाें में दांताें के बीच के गैप काे भरना संभव नहीं हाेता है। इसके लिए आप घर पर इस समस्या काे ठीक करने के बजाय डेंटिस्ट से संपर्क करें। दंत विशेषज्ञ दांताें के बीच के गैप काे दूर करने के लिए आपका इलाज करेंगे। दंत विशेषज्ञ से दांताें के बीच के गैप काे कम करवाना बेहद सुरक्षित हाेता है। इनसे आप एक Price Gap क्यों बनता हैं? अपने दांताें के गैप काे घर पर खुद बंद कर सकते हैं, लेकिन काेई भी समस्या हाेने पर डॉक्टर से सलाह लें।
कलाई एवं हाथ की चोट
कलाई एवं हाथ में विभिन्न प्रकार के फ्रैक्चर हो सकते हैं यह जानना ज़रूरी है कि कलाई का जोड़ दो बड़ी एवं आठ छोटी छोटी हड्डियों से बना होता है। इसके आगे उंगलियों के लिए कई जोड़ और हड्डियाँ रहती है। गिरने के कारण इनमें से किसी भी हड्डी का फ्रैक्चर हो सकता है लेकिन सबसे सामान्य रूप में देखने में आता है कोलीज फ्रैक्चर।
कोलीज फ्रैक्चर ( Colles Fracture)यह फ़्रैक्चर कलाई के जोड़ से लगभग दो सेंटीमीटर ऊपर होता है क्योंकि हड्डी इस जगह पर सबसे ज़्यादा कमज़ोर होती है। फ्रैक्चर होने के बाद ज़्यादातर , हड्डी ऊपर और एक तरफ़ खिसक जाती है और देखने में खाने वाला काँटा या डिनर फ़ोर्क तरह की विकृत नज़र आती है।
कई बार इस हड्डी के दो से भी ज़्यादा टुकड़े हो जाते हैं और ज़ोड वाली तरफ़ भी प्रभावित हो जाती है।
स्वाभाविक है कि ऐसी चोट लगने के बाद आप अपने आस पास के ऑर्थोपीडिक सर्जन यानी अस्थि शल्य विशेषज्ञ को दिखाकर उसका एक्सरे करवाएंगे । निदान अथवा डायगनोसिस होने के बाद इसके इलाज में देरी नहीं करनी चाहिए। यदि बेहोश करके भी से हड्डी को अपनी जगह एक Price Gap क्यों बनता हैं? पर वापस लाना आवश्यक हो तो इसे हिचकिचाना नहीं चाहिए।
प्लास्टर लगने के बाद की सावधानियां
- यदि उंगलियों में सूजन आ जाए /उनका रंग बदलना शुरू हो जाए / ज़्यादा तेज दर्द हो या उंगली चलाने में दिक़्क़त हो तो फ़ौरन अपने डॉक्टर से मिलें।
- हाथ को हमेशा ऊँचा उठाकर रखें। यदि हाथ को लटकाकर रखेंगे तो उंगलियों में सूजन आने का डर रहता है और इससे उंगलियाँ अकड़न भी आ जाती है।
- उंगलियों को लगातार चलाते रहें । इससे खून का दौरा चलता रहता है और खून जमा नहीं होता जिससे सूजन नहीं होती और अकडन भी नहीं होती
- कई बार यह देखा गया है कि प्लास्टर लगने के बाद बाज़ू को स्लिंग में रखने के कारण , व्यक्ति अपने कंधे और कोहनी के जोड़ों को नहीं चलाते और कंधा जाम हो जाता है। इसलिए आवश्यक है कि दिन में तीन चार बार बाजु को स्लिंग से बाहर निकाल कर कंधे एवं कोहनी का व्यायाम आवश्य करें ताकि वे जाम न हो जाए।
- प्लास्टर उतरने के कुछ दिन बाद भी हाथ को ऊँचा रखना चाहिए
- हाथ की अंगुलियां चलाते रहें
- कोसे पानी में हाथ डालकर व्यायाम करें
- नरम गेंद या बच्चों द्वारा खिलौने बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विशेष प्रकार की मिट्टी से हाथों का व्यायाम करें
- ध्यान रहे कंधे और कोहनी का व्यायाम भी लगातार करते रहे
कलाई एवं हाथ के अन्य फ्रैक्चर
इसी प्रकार से हाथ की छोटी हड्डियों के अन्य कई प्रकार के फ्रैक्चर हो सकते हैं और उन्हें या तो प्लास्टर या उँगलियों को एक दूसरे के साथ स्टरेपिंग करके ठीक किया जा सकता है। कुछ फ्रैक्चर ऐसे होते हैं कि उन्हें ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि ऐसा होगा तो आपके ऑर्थोपीडिक सर्जन आपको इसकी जानकारी दे देंगे बहरहाल ज़्यादातर फ्रैक्चर का इलाज बिना ऑपरेशन के किया जा सकता है इन सब फ्रैक्चर में भी ये सब सावधानियां , जो ऊपर लिखी गई हैं , का पालन करना आवश्यक है।
एक तो यह है कि वृद्धावस्था में गिरने से कैसे बचा जाए और दूसरा कनजोर हड्डी यानी ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज साथ साथ ज़रूर किया जाए। ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज के लिए कुछ विशेष प्रकार की दवाइयां आसानी से उपलब्ध है। अपने डॉक्टर की सलाह के बाद कैल्शियम और विटामिन D भी ज़रूर लें।
गिरने से बचाव
- बढ़ती उम्र के साथ संतुलन कुछ कम हो सकता है। यदि ऐसा है तो चलने के लिए छड़ी इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है
- फिसलन वाली जगह पर न चले
- गीले फ़र्श पर न चले
- बाथरूम में एसी टाइल लगवाए जिससे फिसलने की संभावना कम हो और हेंड रेलिंग भी लगवाए। घर के अंदर एक Price Gap क्यों बनता हैं? क़ालीन एवं फ़र्नीचर इस प्रकार से रखें कि व्यक्ति का पैर न अटके ।
डेंटल ब्रिज (Dental Bridge) क्या हैं?
डेंटल ब्रिज एक वैकल्पिक समाधान है। जब दो स्वस्थ दांतों के बीच एक दांत गायब हो जाता है, तब उन दो दांतों का सहारा लेकर एक प्रोस्थेटिक मुकुट देते हैं। या दंत पुलों को प्रत्यारोपण-समर्थित किया जा सकता है। यह खुली जगह में ठीक से फिट हो जाता है। वे मूल दांत के उद्देश्य को सौंदर्य से पूरा करते हैं और दांतों की उपस्थिति को बहाल करते हैं।
विभिन्न प्रकार के ब्रिज क्या उपलब्ध हैं?
किसी भी प्रकार के डेंटल ब्रिज को चुनने के लिए हर व्यक्ति के पास अलग-अलग विकल्प हो सकते हैं।
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1. कैंटिलीवर ब्रिज: दांतों के अस्तित्व को बचाने के लिए ‘कैंटिलीवर ब्रिज’ का उपयोग किया जाता है। वे मुख्य रूप से चीनी मिट्टी के बरतन से बने होते एक Price Gap क्यों बनता हैं? हैं और धातु से जुड़ें होते हैं। इस प्रकार के पुल सामने के दांतों को सौंदर्य की दृष्टि से बहाल करने के लिए अधिक उपयुक्त हैं तो वही ब्रैकट ब्रिज अपने बड़ें आकार के कारण दाढ़ के दांतों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।
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2. पारंपरिक ब्रिज: ‘पारंपरिक ब्रिज’ में लापता दांतो के दोनों किनारों पर एक ताज का निर्माण शामिल होता है। ये कई वर्षों से सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले ब्रिज में से एक हैं। इस प्रकार के ब्रिज में एक कृत्रिम दांत का उपयोग होता है, जिसे पोंटिक कहा जाता है। जो हर तरफ पकड़ में होता है। ये ब्रिज मजबूत, टिकाऊ और लंबे समय तक चलने वाले होते हैं।
डेंटल ब्रिज के क्या फायदे हैं?
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1. सामान्य बोलचाल को बहाल करना: व्यक्ति के दांत नहीं होने पर उसकी सामान्य ज़िन्दगी और बोलने पर असर पड़ता है, इसलिए डेंटल ब्रिज एक अच्छा समाधान हैं। डेंटल ब्रिज के साथ बोलते समय एक व्यक्ति सहज और अच्छा महसूस कर सकता है।
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2. चबाने की क्षमता में सुधार करता है: यदि एक दांत भी गायब हो जाए तो खाना चबाते समय बहुत सारी समस्याएं होती हैं। डेंटल ब्रिज खाना खाते समय उसको ठीक से चबाने की क्षमता में सुधार लाता हैं। डेंटल ब्रिज के साथ खाना चबाते समय व्यक्ति को कभी भी किसी प्रकार का दर्द या समस्या महसूस नहीं हो सकती है।
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3. चेहरे की संरचना को बनाए रखता है: एक दांत नहीं होने की वजह से जबड़ें की हड्डी को नुकसान होता है, जिसकी वजह से समस्याएं उत्पन्न होने लगती है। यह धीरे-धीरे व्यक्ति के चेहरे की संरचना को विकृत करना शुरू कर देता है। डेंटल ब्रिज लापता दांत की जगह लगा सकते हैं, उसके बाद व्यक्ति के चेहरे की संरचना खराब नहीं होती बल्कि उसको अच्छी तरीके से बनाए रखने में मदद करता है।
कब और क्यों ज़रूरी है फिजियोथेरेपी? जानिए इससे जुड़ी खास बातें
अधिकांश लोग फिजियोथेरेपी को ‘एक और’ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति से ज्यादा महत्व नहीं देते। कुछ इसके दायरे को मसाज तक सीमित कर देते हैं, तो कुछ इसे खेल के दौरान लगने वाली चोट को ठीक करने के लिए उपयोगी मानते हैं। पर फिजियोथेरेपी की उपयोगिता इससे कहीं ज्यादा है। क्यों और कब जरूरी है फिजियोथेरेपी बता रही हैं वंदना भारती-
अगर दवा, इंजेक्शन और ऑपरेशन के बिना दर्द से राहत पाना चाहते हैं तो फिजियोथेरेपी के बारे में सोचना चाहिए। चिकित्सा और सेहत दोनों ही क्षेत्रों के लिए यह तकनीक उपयोगी है। पर जानकारी की कमी व खर्च बचाने की चाह में लोग दर्द निवारक दवाएं लेते रहते हैं। मरीज तभी फिजियोथेरेपिस्ट के पास जाते हैं, जब दर्द असहनीय हो जाता है।
इम्यून सिस्टम बढ़ता है
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, वैक्सीन के दूसरे डोज में देरी सप्लाई और इम्यून सिस्टम दोनों के लिए फायदेमंद है. रिसर्च में पता चला है कि अगर वैक्सीन का दूसरा डोज देरी से प्राप्त हो, तो वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडीज का स्तर 20 फीसदी से 300 फीसदी तक बढ़ सकता है. ऐसे में यह नई खोज सिंगापुर और भारत समेत कई देशों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है.
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सप्लाई की दिक्कत भी होगी दूर
सिंगापुर में एक बार फिर मामलों में मामूली इजाफा देखा जा रहा है. जिसके चलते यहां दो डोज के बीच गैप को 4-6 हफ्ते कर दिया गया है. इससे पहले यह अंतराल 3-4 सप्ताह का था. वहीं, भारत में भी कोविशील्ड की 2 डोज के बीच गैप को बढ़ाकर 12-16 हफ्ते किया गया है. गैप बढ़ने से वैक्सीन की सप्लाई साइड में भी हो रही दिक्कतें दूर हो सकती हैं. संभावना जताई जा रही है कि कम वैक्सीन डोज और ज्यादा जनसंख्या वाले देश इसी नीति पर काम कर सकते हैं.
वैक्सीन की दो डोज क्यों जरूरी है. इसे ऐसे समझिए कि पहली डोज अगर अगर आपके शरीर में एंटीबॉडी पैदा करती है, तो दूसरी डोज एंटीबॉडी को मजबूत बनाती है. दोनों काम सही तरीके से होने पर ही हमारा शरीर किसी बीमारी से लड़ने के लायक बनता है. यही वजह है कि कोरोना के खिलाफ डबल डोज वैक्सीन तैयार करने वाली कंपनियों का टीका ले रहे हैं तो दोनों टीका जरूरी है.
लेकिन गैप ज्यादा न हो
अगर दोनों डोज के बीच अंतराल ज्यादा एक Price Gap क्यों बनता हैं? होगा, तो देशों को आबादी को सुरक्षित करने में ज्यादा समय लगेगा. क्योंकि, वैक्सीन के पहले डोज से कुछ सुरक्षा जरूर मिलती है, लेकिन दूसरा डोज लगने के कई हफ्तों बाद तक भी इससे व्यक्ति को पूरी तरह इम्युनाइज्ड नहीं समझा जा सकता. इसके अलावा अगर कम असरदार वैक्सीन का इस्तेमाल हो रहा या ज्यादा वायरस के अधिक संक्रामक वैरिएंट्स फैल रहे हैं, तो दो डोज के बीच अंतराल ज्यादा होना भी खतरनाक हो सकता है.
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