आभासी दलाल

DBRAU: पंद्रह साल में स्कूटर से मर्सिडीज तक पहुंच गया कुलपतियों का दलाल, 100 करोड़ का है टर्नओवर
DBRAU 100 करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनी का मालिक है वह। आभासी दलाल खाते में 20 करोड़ हाल ही में मिला डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय का काम पूछताछ में मिली जानकारी। 250 कर्मचारी करते हैं कंपनी में काम। कमिशन के खेल से बनता रहा कुलपतियों का खास।
आगरा, जागरण संवाददाता। डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में कमीशन के खेल का दलाल अजय मिश्रा पंद्रह साल पहले स्कूटर से चलता था। फोटो स्टेट व प्रिंट का काम करने वाले अजय ने ऐसा शार्ट कट लगाया कि पंद्रह साल में उसकी कंपनी का टर्नओवर 100 करोड़ तक पहुंच गया। अब वह आलीशान कोठी में रहता है और मर्सिडीज कार से चलता है। एसटीएफ की पूछताछ में जब उसके बिजनेस के सफर की जानकारी हुई तो सभी चौंक गए। कोर्ट के आदेश पर उसे जेल भेजा गया है। डिजिटेक्स टेक्नोलाजीज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डेविड मारियो डेनिस ने लखनऊ के इंदिरा नगर थाने में डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के पूर्व कार्यवाहक कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक और एक्सएलआइसीटी कंपनी के मालिक अजय मिश्रा के विरुद्ध अभियोग पंजीकृत कराया है। इसमें बिल पास कराने के नाम पर 15 प्रतिशत कमीशन लेने का आरोप है। एसटीएफ ने अजय मिश्रा से पूछताछ की तो विश्वविद्यालय का चौंकाने वाला कमीशन का खेल उजागर हुआ। लखनऊ के खुर्रम नगर निवासी अजय मिश्रा के पिता स्व. गौरीशंकर मिश्रा बैंक से सेवानिवृत्त थे।
कमिशन के दम पर बना कुलपतियों का खास
अजय मिश्रा पढ़ाई में शुरुआत से औसत था। 12वीं में उसे 59 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए थे। इसके बाद उसने 1988 में लखनऊ से ही बीकाम किया। वर्ष 2000 तक उसने सीए की तैयारी की, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद कंप्यूटर डेटा प्रोसेसिंग का काम शुरू कर दिया। उस समय वह स्कूटर से चलता था और पैतृक घर में ही रहता था। धीरे-धीरे उसने अपना काम बढ़ाया और कमीशन और संपर्क से आगे बढ़ा। कमीशन के दम पर वह सभी कुलपतियों का खास बनता रहा। अजय मिश्रा ने एसटीएफ को बताया कि वर्तमान में उसकी कंपनी में 250 कर्मचारी हैं। 100 करोड़ का वार्षिक टर्न ओवर है और 20 करोड़ रुपये कंपनी के खाते में हैं। डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के पूर्व कार्यवाहक कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक की दलाली लेने वाला अजय मिश्रा कई अन्य कुलपतियों का भी खास रहा है। वह कमीशन के दम पर शिक्षण संस्थानों में अनावश्यक उपकरण आदि की भी सप्लाई देता था। कुलपतियों की सांठगांठ से ही उसकी कंपनी का टर्नओवर गुणात्मक रूप में बढ़ता गया। कमीशन की कमाई भी उसकी कंपनी में लगे होने की आभासी दलाल आशंका है। एसटीएफ टीम को पूछताछ में वह उन्हें अपना भगवान बताकर चुप हो जाता था। एसटीएफ को प्रो. विनय कुमार पाठक के अलावा कई अन्य कुलपतियों से अजय मिश्रा की सांठगांठ के साक्ष्य भी मिले हैं। इनकी भी जांच की जा रही है।
अजय मिश्रा ने लिया नकद कमीशन
अजय मिश्रा ने प्रो. विनय कुमार पाठक के लिए एजेंसी से कमीशन के रूप में नकदी ली थी। इसे उसने अपने कई परिचितों और अन्य खातों में जमा कराया है। आरोपित ने बचने के लिए पहले कहा कि उसने रकम के बदले डेविड को सामान दिया था। उसका बिल मांगने पर उसने फर्म की ओर बिल भी उपलब्ध करा दिया। एसटीएफ उसके बिल की जांच कर रही है।
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एक्सचेंज के पास नहीं असूचीबद्ध 194 में से 168 कंपनी के प्रवर्तकों के नाम-पते
कुछ अखबारों में आज प्रकाशित विस्तृत सार्वजनिक सूचना में 194 में से 168 कंपनियों के प्रवर्तकों के नाम व पते की अनुपलब्धता के बारे में जानकारी दी गई है। इसमें कहा गया है कि प्रवर्तकों के नाम व पते एक्सचेंज के रिकॉर्ड या संबंधित कंपनी पंजीयक, रजिस्ट्रार ऐंड ट्रांसफर एजेंट्स या डिपॉजिटरीज के प्राप्त जानकारी के आधार पर सामने रखे गए हैं। सिर्फ 26 कंपनियों के प्रवर्तकों के आभासी दलाल नाम उपलब्ध थे।
असूचीबद्धता का यह कदम सेबी की तरफ से सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या घटाए जाने की बाबत उठाए गए कदम का हिस्सा है। मई में सेबी के चेयरमैन यू के सिन्हा ने कहा था, नियामक निष्क्रिय कंपनियों को असूचीबद्ध कराने और प्रवर्तकों को दंडित करने पर जोर दे रहा है। अगर प्रवर्तक निकासी का रास्ता उपलब्ध नहीं कराते हैं तो हम उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। पहला, हम बाजार से रकम जुटाने पर रोक लगाएंगे। इसके अलावा कंपनी, प्रवर्तकों और यहां तक कि निदेशकों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
बीएसई के असूचीबद्धता नोटिस में कहा गया है कि ये कंपनियां 17 अगस्त से असूचीबद्ध हो गई हैं। साथ ही इन असूचीबद्ध कंपनियों के प्रवर्तकों को आम शेयरधारकों से उचित कीमत पर शेयर खरीदना जरूरी होगा और यह कीमत एक्सचेंज की तरफ से नियुक्त स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ता तय करेंगे। नोटिस में कहा गया है कि उचित कीमत पर आम निवेशकों को निकासी का रास्ता मुहैया कराना प्रवर्तकों पर निर्भर करता है। इन अनाम प्रवर्तकों को प्रतिभूति बाजार तक पहुंच से 10 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है।
निवेशकों को डर है कि प्रवर्तकों के नाम के बिना यह प्रक्रिया हास्यास्पद बन जाएगी। मिडास टच इन्वेस्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वीरेंद्र जैन ने कहा, यह काफी मजाकिया है। आप कुछ आभासी व्यक्ति को प्रतिबंधित कर रहे हैं और उन्हें माल-असबाब के साथ जाने की अनुमति दे रहे हैं। जैन ने इस प्रक्रिया को अवैधानिक बताया। उन्होंने कहा कि आम शेयरधारकों को उचित कीमत दिए बिना असूचीबद्धता नहीं हो सकती। इस मसले पर जैन सेबी के साथ जनहित याचिका के साथ संघर्ष कर चुके हैं।
आगे की राह और प्रवर्तकों को खोजने की खातिर एक्सचेंज की कोशिशों के बारे में पूछे जाने पर बीएसई के प्रवक्ता ने टिप्पणी करने से मना कर दिया। प्रतिभूतियों के विनियमन से दो-चार होने वाले वरिष्ठ पेशेवरों ने जैन के आकलन से सहमति जताई। एक वरिष्ठ पेशेवर और इंस्टिट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया के भूतपूर्व अध्यक्ष एस एन अनंतसुब्रमण्यन ने कहा, उन्हें वैसी कंपनी को असूचीबद्ध करना चाहिए जिसके बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है।
सेबी से पंजीकृत मर्चेंट बैंकर कॉरपोरेट प्रोफेशनल के प्रबंध आभासी दलाल निदेशक पवन के विजय ने कहा, असूचीबद्धता की प्रक्रिया सभी नियामकों की सामूहिक कोशिश होनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि ये सभी लोग हवा में गायब हो गए। इन शेयरों की हालांकि ट्रेडिंग नहींं हो रही है, लेकिन इनमें से कई ने कंपनी मामलों के मंत्रालय के अनुपालन के जरिए अपनी कंपनियों को जीवित रखा है। उन्होंने आभासी दलाल कहा कि अगर प्रवर्तक गुमनाम बने हुए हैं तो पूरी प्रक्रिया मजाक बनकर रह जाएगी। कौन उचित कीमत का भुगतान करेगा? निवेशकों को कुछ नहीं मिलेगा?
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91 361 258 2677
amaresh @ iitg ⋅ ac ⋅ in
Research Interest:
प्राकृतिक और मिश्रित संवहन प्रवाह | विद्युत रासायनिक ऊर्जा रूपांतरण और भंडारण | सीएफडी | हीट ट्रांसफर | घुमावदार निर्देशांक में संरचित ग्रिड तकनीक | परिमित मात्रा के तरीके और असंरचित ग्रिड तकनीक |