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म्यूचुअल फंड को समझना

म्यूचुअल फंड को समझना
Photo:INDIA TV Mutual Funds

म्यूचुअल फंड बनाम फिक्स्ड डिपॉजिट

यदि आप एक ऐसे इन्वेस्टर हैं, जो फाइनेंशियल मार्केट के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो आपके लिए कई इन्वेस्टमेंट विकल्प उपलब्ध हैं. हालांकि, जिन दो विकल्प को लेकर लोग अधिकतम भ्रमित रहते हैं, वे हैं म्यूचुअल फंड बनाम एफडी. म्यूचुअल फंड एक स्टैंडर्ड इन्वेस्टमेंट विकल्प है, लेकिन जब आप इसकी तुलना फिक्स्ड डिपॉजिट से करते हैं, तो आपको आश्चर्य होगा कि फिक्स्ड डिपॉजिट कितने सामान्य हैं. दोनों इन्वेस्टमेंट अलग-अलग तरीके के इन्वेस्टमेंट हैं. इन्वेस्टमेंट करने से पहले, किसी भी व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि इन्वेस्टमेंट क्या होता है और इसके क्या लाभ और नुकसान हो सकते हैं.

लोकप्रिय इन्वेस्टमेंट साधनों के रूप में, फिक्स्ड डिपॉजिट और म्यूचुअल फंड ने इन्वेस्टर्स को अपनी सेविंग को तेजी से बढ़ाने में सक्षम बनाया है. हालांकि, इन दोनों तरीकों से प्रदान किए जाने वाले लाभ आपकी इन्वेस्टमेंट आवश्यकताओं के अनुसार अलग-अलग होते हैं. इसलिए, दोनों में से किसी एक को चुनने से पहले इन्वेस्टमेंट के दोनों तरीकों के बारे में विस्तार से जानना बेहतर है.

फिक्स्ड डिपॉजिट क्या है

सबसे सुरक्षित इन्वेस्टमेंट विकल्पों में से एक के रूप में, फिक्स्ड डिपॉजिट आपको अपने डिपॉजिट पर सुनिश्चित रिटर्न प्राप्त करने में मदद कर सकती है. आप लंपसम राशि डिपॉजिट कर सकते हैं जिस पर पूर्वनिर्धारित अवधि के लिए एक निश्चित ब्याज़ प्राप्त होता है. फिक्स्ड डिपॉजिट में, इन्वेस्टर के समूह द्वारा पैसे का पूलिंग नहीं होती है, और इन्वेस्ट करने से पहले ब्याज़ का निर्णय लिया जाता है, इसलिए रिटर्न बाहरी मार्केट के प्रभावों से अप्रभावित रहता है.

म्यूचुअल फंड क्या होते हैं

म्यूचुअल फंड एक फाइनेंशियल साधन है, जो स्टॉक, बांड, इक्विटीज़ और अन्य मार्केट लिंक्ड इंस्ट्रूमेंट या सिक्योरिटीज़ के पोर्टफोलियो से बनाया जाता है. कई इन्वेस्टर मिलकर म्यूचुअल फंड में इन्वेस्टमेंट करने के लिए आते हैं और अपनी सेविंग बढ़ाने के एक सामान्य लक्ष्य के साथ आते हैं. इन इन्वेस्टमेंट के माध्यम से अर्जित कुल आय खर्च काटने के बाद इन्वेस्टर के बीच बराबर बराबर बांट दी जाती है.

फिक्स्ड डिपॉजिट और म्यूचुअल फंड में इन्वेस्टमेंट के लाभ

  • आपने कौन से प्रकार का फंड चुना है इस आधार पर म्यूचल फंड में लॉक इन पीरियड हो सकता है, या फिर आप जब चाहें इन से निकल सकते हैं. इसी प्रकार, आप अपने पैसे को फिक्स्ड डिपॉजिट के लिए 1–5 वर्षों तक फंड के साथ रख सकते हैं.
  • चाहे आप म्यूचुअल म्यूचुअल फंड को समझना फंड का विकल्प चुनें या फिक्स्ड डिपॉजिट का, लंबी अवधि के लिए इन्वेस्टमेंट करना हमेशा फायदेमंद रहता है. आप कम अवधि (यानी एक वर्ष से कम समय) चुनने पर उच्च रिटर्न प्राप्त नहीं कर सकते.
  • म्यूचुअल फंड के मामले में, वर्ष समाप्त होने से पहले आपके द्वारा किए गए लाभ पर शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स का टैक्स लगाया जाता है. फिक्स्ड डिपॉजिट के मामले में, फाइनेंशियल वर्ष 2020-21 के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट से अर्जित ब्याज़ पर टीडीएस. फाइनेंशियल वर्ष के दौरान रु. 5,000. इसे 14 मई, 2020 से लागू किया गया है.

फिक्स्ड डिपॉजिट और म्यूचुअल फंड के बीच का अंतर

जब आप एफडी खोलने के लिए पब्लिक सेक्टर, प्राइवेट बैंक या नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी (एनबीएफसी) के पास जाते हैं, तो आपको पहले से मेच्योरिटी पर मिलने वाली ब्याज़ दर के बारे में सूचित किया जाता है. इस लिखित ब्याज़ दर की गारंटी होती है और इसे बदला नहीं जा सकता.

हालांकि आपको म्यूचुअल फंड से फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में ज़्यादा इंटरेस्ट मिल सकता है लेकिन कोई आश्वासन नहीं है कि यह स्थिर रहेगा. फिक्स्ड डिपॉजिट से अलग म्यूचुअल फंड के फायदे एक जैसे नहीं रहते. ऐसा इसलिए है क्योंकि इक्विटी म्यूचुअल फंड शेयर मार्केटमें अस्थिरता के अधीन हैं. इसलिए, हर म्यूचुअल फंड फाइन प्रिंट के साथ आता है, जो यह बताता है कि म्यूचुअल फंड में इंवेस्टमेंट बाजार और अन्य जोखिमों के अधीन है.

आप म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करना चाहते हैं या फिक्स्ड डिपॉजिट में, ये पसंद केवल आपकी जोखिम लेने की क्षमता पर निर्भर करती है.

म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले जान लें ये तीन रिस्क, फायदे में रहेंगे आप

डायवर्सिफाइड कर अनसिस्टेमेटिक रिस्क को कम किया जा सकता है, जबकि सिर्फ समय सीमा को बढ़ाकर और इक्विटी को पर्याप्त लंबे समय तक होल्ड कर ही सिस्टेमेटिक रिस्क को एक हद तक कम किया जा सकता है.

म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले जान लें ये तीन रिस्क, फायदे में रहेंगे आप

TV9 Bharatvarsh | Edited By: संजीत कुमार

Updated on: Jun 23, 2022 | 4:05 PM

म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) जैसे मार्केट लिंक्ड प्रोडक्ट में निवेश करते समय हम सभी को पहले इसमें हमेशा ही मौजूद रहने वाले जोखिमों को समझना होगा और फिर यह भी समझना होगा कि जोखिम को पूरी तरह से नष्ट या समाप्त नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसे केवल कम या ट्रांसफर ही किया जा सकता है. रिस्क को ट्रांसफर करने का सीधा सा मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति आवश्यक सीमा तक रिटर्न (Return) प्राप्त करने के लिए अभी जोखिम नहीं लेता है. और अगर प्राप्त राशि सोची गई रकम से कम रह जाती है तो वह बाद में बहुत अधिक जोखिम उठा सकता है. दूसरी ओर जोखिम को कम करने का अर्थ है जहां तक संभव हो इसे कम करना और इस प्रकार परिणाम को सबसे बेहतर स्तर तक ले जाना.

इक्विटी में निवेश करने वाले प्रोडक्ट के लिए दो सबसे चर्चित जोखिम हैं, पहला अनसिस्टेमेटिक रिस्क (सेक्टर या कंपनी पर केंद्रित) और दूसरा सिस्टेमेटिक रिस्ट (पूरे म्यूचुअल फंड को समझना बाजार में निहित जोखिम, उदाहरण के लिए जंग). कई विशेषज्ञ अस्थिरता और जोखिम के बीच के अंतर पर भी प्रकाश डालते हैं. अस्थिरता केवल कीमतों में रोजाना का उतार-चढ़ाव है, जबकि जोखिम को दीर्घकालिक वित्तीय लक्ष्यों या परिणामों को तैयार करने या प्राप्त म्यूचुअल फंड को समझना करने में असमर्थता के रूप में माना जा सकता है. इस प्रकार, इक्विटी को अस्थिर कहा जा सकता है लेकिन शायद वह जोखिम भरा नहीं है, जबकि एक गारंटेड, पारंपरिक, फिक्स इनकम प्रोडक्ट देखने में स्थिर लेकिन अपेक्षाकृत जोखिम भरे हो सकते हैं.

स्ट्रैटेजी से कम करें रिस्क

पीजीआईएम इंडिया म्यूचुअल फंड (PGIM India Mutual Fund) के सीईओ अजीत मेनन ने कहा, अलग-अलग प्रकार के जोखिमों की बात करें तो इक्विटी में शामिल जोखिमों को कम करने के लिए पर्याप्त रणनीतियां हैं. विभिन्न शेयरों, सेक्टर्स, निवेश शैलियों आदि पर पोर्टफोलियो को एक बिंदु तक डायवर्सिफाइड कर अव्यवस्थित जोखिम को कम किया जा सकता है, जबकि सिर्फ समय सीमा को बढ़ाकर और इक्विटी को पर्याप्त लंबे समय तक होल्ड कर ही व्यवस्थित जोखिम को एक हद तक कम किया जा सकता है. ये दोनों विचार पीजीआईएम इंडिया में हमारे पोर्टफोलियो निर्माण प्रक्रिया में शामिल हैं. हम कॉरपोरेट गवर्नेंस मानकों, कमाई के ट्रैक रिकॉर्ड और स्थिरता, दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य और पूंजी दक्षता पर ध्यान केंद्रित करते हैं क्योंकि ये कुछ ऐसे कारक हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारे पोर्टफोलियो में जोखिम काफी हद तक कम हो.

स्टॉक को चुनने के लिए हमारा दूसरे स्तर का फिल्टर कम डेट टु इक्विटी रेशियो, पिछली साइकिल में सकारात्मक ऑपरेटिंग कैशफ्लो से लेकर हमारे पोर्टफोलियो में अनिवार्य रूप से तैयार डाउनसाइड प्रोटेक्शन पर आधारित होता है. हम पीईजी अनुपात (मूल्य/आय से वृद्धि) जैसे विभिन्न अन्य मापदंडों को देखते हुए इसमें मदद करते हैं. यह हमें बताता है कि हम इस बात को लेकर सचेत हैं कि हम भविष्य के ग्रोथ पोटेंशियल के लिए आज कितना भुगतान कर रहे हैं.

एक हालिया उदाहरण हमारे प्रोसेस को बखूबी बयां करता है, जिसमें कुछ नए युग की टेक कंपनियों के आईपीओ से दूर रहने के कारण हम बड़ी गिरावट से बचने में सफल रहे हैं. सकारात्मक नकदी प्रवाह पर हमारे इन्वेस्टमेंट फिल्टर ने इस मामले में हमारे पक्ष में काम किया है.

बिहेवियर रिस्क

तीसरे प्रकार का जोखिम जिसके बारे में विशेषज्ञ कम ही बात करते हैं, वह है बिहेवियर रिस्क. यह मनी मैनजर्स और इंन्वस्टर्स दोनों के रूप में हमारे पूर्वाग्रहों से संबंधित है. यह हमें डेटा को निष्पक्ष रूप से देखने से रोकता है और इस तरह त्रुटियां पैदा होती हैं. इनकी वजह से कभी-कभी पूंजी का स्थायी नुकसान हो सकता है. बेहतर रिटर्न की उम्मीद में उन शेयरों को होल्ड करने की प्रवृत्ति, जिनके फंडामेंटल में कमी आने के कारण उनके मूल्य में गिरावट आई है, ऐसा ही एक उदाहरण है. लोकप्रिय रूप से इसे डिसपोजीशन इफेक्ट के रूप में जाना जाता है, यहां हम अपने घाटे वाले शेयरों को अपने पोर्टफोलियो में रखते हुए अपने मुनाफे वाले शेयरों को बेचते हैं.

वास्तव में अन्य पहलू भी हैं जो हमारी मदद करते हैं जैसे इक्विटी रिसर्च एनालिस्ट टीम जो कि आंतरिक रूप से अपने विभिन्न दृष्टिकोणों पर चर्चा करती है. यह बिहेवियर रिस्क में कमी लाने के लिए भी काम करती है, क्योंकि यहां विचारों पर विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण रखते हुए काफी गहन चर्चा की जाती है.

एक और चीज जो हमारे दृष्टिकोण में विस्तार लाती है, वह है हमारी ग्लोबल टीमों से मिलने वाला समर्थन और इनपुट. यह मदद हमें वैश्विक स्तर पर घटने वाली घटनाओं को समझने में मदद करता है, और बाजारों पर पड़ने वाले प्रभाव को और भी बारीकी से समझने में मदद करता है. यह सब मिलकर मात्रात्मक फिल्टर के साथ व्यक्तिगत व्यवहार से जुड़े जोखिम को काफी हद तक कम करने करती हैं. इन फिल्टर्स की चर्चा हमने ऊपर की है.

जानिए क्यों है म्यूचुअल फंड्स आपके लिए फायदे का मौका, कैसे और कब लगाएं पैसा, पढ़ें सभी सवालों के जवाब

आप Mutual Fund ब्रोकर या फिर डिस्ट्रीब्यूटर के ऑफिस पहुंच कर ऑफ लाइन तरीके से निवेश कर सकते हैं। इसमें भी आपको फार्म भर कर केवाईसी की शर्तों को पूरा करना होगा। आप म्यूचुअल फंड की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर घर बैठे स्कीम में निवेश कर सकते हैं.

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। निवेश एक ऐसी प्रकिया है जिसकी योजना तो सभी बनाते हैं लेकिन इस पर समय से फैसला बेहद कम ही लोग ले पाते हैं. दरअसल निवेश को लेकर लोगों के मन में इतने सवाल होते हैं कि इनका जवाब तलाशते तलाशते वक्त हाथ से निकल जाता है. अगर आप भी Mutual Fund में निवेश करने की योजना बना रहे हैं लेकिन अपने ही सवालों से परेशान हैं तो आज हम आपके सामने ऐसे 4 सबसे ज्यादा उठने वाले सवालों के जवाब लेकर आएं हैं. इन्हें पढ़ें और इससे पहले कि निवेश का सही वक्त निकल जाए आप फैसला लें और अपनी मेहनत की कमाई से अपना भविष्य बना लें.

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क्यों करें म्यूचुअल फंड में निवेश?

ये सवाल सभी लोगों के दिमाग में सबसे पहले आता है। आप जानते ही हैं कि हर तरह के निवेश में कम या ज्यादा जोखिम रहता ही है, और निवेश पर रिटर्न इस बात पर निर्भर करती है कि आप कितना जोखिम उठा रहे हैं. अक्सर ऊंचे रिटर्न के लालच में आम लोग अपनी बड़ी रकम गंवा देते हैं वहीं कुछ लोग रकम गंवाने के डर से बेहतर निवेश पाने की कोशिश ही नहीं करते और पारंपरिक निवेश विकल्पों में पैसा लगा देते हैं जो अक्सर बढ़ती महंगाई में नुकसान का सौदा बन जाते हैं। Mutual Fund आम निवेशकों के जोखिम को कम करता है और बेहतर रिटर्न देने की कोशिश करता है। म्यूचुअल फंड में आम लोग छोटी छोटी रकम से कम जोखिम के साथ निवेश की शुरुआत कर सकते हैं और आपके इस छोटे निवेश पर भी बाजार के एक एक्सपर्ट की लगातार नजर रहती है, जो पूरी कोशिश करता है कि आपका रिटर्न बाकी लोगों से ऊंचा रहे। वहीं निवेश क्यों करें, इस सवाल का जवाब पाने के लिए आप 5Paisa की भी मदद ले सकते हैं. 5paisa के एप या वेबसाइट पर जाकर आप म्यूचुअल फंड्स के प्रदर्शन पर नजर डाल सकते हैं वहीं इन स्कीम के फायदों की भी जानकारी ले सकते हैं. जिससे आपको ये समझने में काफी आसानी होगी कि एमएफ में क्यों निवेश किया जाना चाहिए .

किस म्यूचुअल फंड स्कीम म्यूचुअल फंड को समझना म्यूचुअल फंड को समझना में करें निवेश?

इस सवाल का जवाब पाने के लिए पहले आपको ये तय करना होगा कि आप आने वाले समय में इस रकम से क्या करना चाहते हैं. दरअसल MF scheme कई तरह की होती हैं और वे अलग अलग रिटर्न के आधार पर प्लान की जाती. यानि आपको सुरक्षित लेकिन एफडी से बेहतर रिटर्न चाहिए तो डेट फंड आपके लिए हैं. वहीं आप कम समय में तेज कमाई करना चाहते हैं लेकिन मार्केट में उतरने से डरते हैं तो आपके लिए इक्विटी आधारित कई स्कीम मौजूद है। बच्चों की पढ़ाई, उनकी शादी यहां तक कि कुछ सालों बाद फॉरेन ट्रिप के लिए भी Mutual Fund की मदद ले सकते हैं। आपको करना ये है कि पहले अपना जोखिम लेने का स्तर चुने और फिर अपनी जरूरत का कैलकुलेशन करें और फिर बाजार में रिसर्च करें.या फिर आप बाजार के किसी काबिल जानकार की भी मदद ले सकते हैं जो आपको आपका लक्ष्य हासिल करने के लिए सबसे अच्छे विकल्प बताएगा। 5Paisa भी आपको आपकी जरूरतों और जोखिम के स्तरों के आधार पर एमएफ स्कीम चुनने में मदद करता है. जिससे आप अपना रिटर्न बढ़ा सकते हैं। ये एक डीआईवाई प्लेटफार्म है यानि यहां आप सिर्फ निवेश ही नहीं करते बल्कि निवेश, रणनीतियों और बाजार को समझते और सीखते भी हैं जिसकी वजह से आप अपनी पूरी संतुष्टि के साथ फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं।

कब करें म्युचुअल फंड में निवेश?

MF scheme के रिटर्न पर नजर डालें तो निवेशकों को इसका असली फायदा लंबी अवधि में दिखता है.वहीं लंबी अवधि का नजरिया लेकर चलने म्यूचुअल फंड को समझना पर आप बेहद छोटी रकम को बढ़ता हुआ भी देखते हैं. अगर आप 5 Paisa के म्यूचुअल फंड कैलकुलेटर की मदद लेंगे तो आपको पता चलेगा कि कैसे लंबी अवधि में छोटी रकम बड़ी संपत्ति में बदल जाती है. और इससे आपको बाजार में समय पर निवेश के फायदे साफ दिखते हैं। बाजार के सभी जानकार मानते हैं कि म्यूचुअल फंड्स में इंश्योरेंस की तरह ही जितनी जल्दी हो निवेश की शुरुआत कर देनी चाहिए. दरअसल युवावस्था में खर्च सीमित किए जा सकते हैं. हालांकि जिम्मेदारी बढ़ने के साथ ये संभव नहीं होता। ऐसे में अगर आपकी नई जॉब लगी हो तो बेहतर है पहली सैलरी से मिठाई खरीदने के साथ एक mutual fund scheme में पैसा लगाना आपके लिए काफी फायदे का सौदा होगा। हालांकि आपने समय बीतने के साथ भी निवेश नहीं किया है तो भी जितनी जल्दी शुरुआत करने का फायदा उतना ज्यादा होगा।

कैसे करें म्युचुअल फंड में निवेश?

Mutual Fund में निवेश आप कई तरीकों से कर सकते हैं। आप जिस स्कीम में निवेश करना चाहते हैं उस स्कीम से जुड़े फंड हाउस में जाकर ऑफलाइन तरीके से निवेश कर सकते हैं। इसके लिए आपको पहले अपनी और स्कीम की पूरी जानकारियों के साथ फॉर्म भरना होगा और केवाईसी की शर्तें पूरी करनी होगी साथ ही चेक या डीडी के जरिए भुगतान करना होगा, अगर आप एसआईपी ले रहें हैं तो आपको कैंसिल चेक देने होंगे।

आप Mutual Fund ब्रोकर या फिर डिस्ट्रीब्यूटर के ऑफिस पहुंच कर ऑफ लाइन तरीके से निवेश कर सकते हैं। इसमें भी आपको फार्म भर कर केवाईसी की शर्तों को पूरा करना होगा। आप म्यूचुअल फंड की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर घर बैठे स्कीम में निवेश कर सकते हैं. यहां आपको ई-केवाईसी के लिए डाक्यूमेंटस अपलोड करने होंगे. पैसों का भुगतान ऑनलाइन किया जा सकता है। आप इसी तरह ब्रोकर की वेबसाइट पर भी जाकर निवेश कर सकते हैं।

कई fund house और broker app निवेश की सुविधा भी देती हैं. इसमें आपको एप डाउनलोड कर eKYC की शर्तों को पूरा करना होगा। 5paisa भी एक ऐसा ही ऐप है। जिसके जरिए शेयर बाजार और Mutual Fund में पैसा लगाने म्यूचुअल फंड को समझना और निकलाने की सुविधा मिलती है. 5paisa देश का सबसे तेजी से बढ़ने वाला डिस्काउंट ब्रोकर ऐप है. एक करोड़ से ज्यादा लोग इस ऐप के साथ जुड़ चुके हैं. इसकी एक और खासियत है. यहां म्यूचुअल फंड में निवेश पर कोई कमीशन नहीं देना होता है। तो अब ज्यादा का सोचना फोन उठाएं और जुड़ जाएं।

Mutual Funds स्कीम में निवेश से पहले रखे इन 4 बातों का ख्याल, मिलेगा बंपर रिटर्न

Mutual Funds स्कीम में निवेश से पहले रखे इन 4 बातों का ख्याल, मिलेगा बंपर रिटर्न Mutual Funds Keep these 4 things in mind before investing you will get bumper returns

Alok Kumar

Edited By: Alok Kumar @alocksone
Updated on: August 09, 2022 13:28 IST

Mutual Funds- India TV Hindi News

Photo:INDIA TV Mutual Funds

Highlights

  • किसी भी म्यूचुअल फंड को समझने के लिए उस फंड के पिछले दो-तीन साल के प्रदर्शन को देखें
  • म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले उसका पोर्टफोलियो चेक जरूर करें
  • बड़े ब्रांड के नाम पर म्यूचुअल फंड में निवेश एक मात्र मापदंड नहीं होना चाहिए

Mutual Funds में किए हुए निवेश पर बैंक एफडी और पोस्टल स्कीम से ज्‍यादा रिटर्न मिलता है। इसके चलते निवेशकों का रुझान तेजी से म्यूचुअल फंड स्कीम की ओर बढ़ा है। लेकिन, ऐसा नहीं है कि सभी निवेशकों को मोटा रिटर्न ही मिला है। बिना सोचे-समझे किए हुए निवेश पर उम्‍मीद के अनुरूप रिटर्न नहीं मिलता है और अक्‍सर घाटा भी उठाना पड़ा है। एक्सपर्ट का कहाना है कि इसकी वजह निवेशक को फंड के बारे में सही जानकारी नहीं होना है। हम आज आपको बता रहा है कि किसी भी म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले निवेशकों को किन-किन बातों की जानकारी जरूर लेनी चाहिए।

1. फंड का पिछला प्रदर्शन देखें

किसी भी म्यूचुअल फंड को समझने के लिए उस फंड के पिछले दो-तीन साल के प्रदर्शन को देखें। हालांकि, पिछला प्रदर्शन भविष्य के प्रदर्शन का आधार नहीं हो सकता है। लेकिन, इससे आपको यह पता चल जाएगा कि यह फंड कैसा प्रदर्शन कर रहा है। उदाहरण के तौर पर अगर कोई फंड तीन साल से मार्केट में है और उसमें 10,000 रुपए का निवेश किया गया है तो यह देखना होगा कि आज के समय में 10,000 रुपए की वैल्यू क्‍या है और उस पर कितना फीसदी रिटर्न साल दर साल मिला है।

2. पोर्टफोलियो चेक करना बहुत जरूरी

पोर्टफोलिओ निवेशक म्यूचुअल फंड में इसलिए निवेश करता है कि इसमें शेयर मार्केट से कम रिस्क होता है। शेयर मार्केट में कोई निवेशक खुद से शेयर का चुनाव करने में असमर्थ होता है, जबकि म्यूचुअल फंड का चुनाव वह कर सकता है। इसलिए म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले उसका पोर्टफोलियो चेक करना बहुत जरूरी होता है। अगर, आप डेट फंड में निवेश करते हैं तो उसका क्रेडिट प्रोफाइल जरूर चेक कर लें।

3. एक्‍सपेन्‍सेज रेशियो को जरूर चेक करें

म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले एक्‍सपेन्‍सेज रेशियो को जरूर चेक करें। अगर, डेट फंड में निवेश करने जा रहे हो तो एक्‍सपेन्‍स रेशियो देखना अनिवार्य हो जाता है। अगर डेट फंड में एक्‍सपेन्‍स रेशियो कम है तो इसमें निवेश करना ज्‍यादा फायदेमंद होगा। इसके साथ ही फंड का कार्पस भी चेक करें। कार्पस में तेजी से गिरना भी खतरे की घंटी होता है।

4. बड़ा नाम निवेश का पैमाना नहीं

कभी भी बड़े ब्रांड के नाम पर म्यूचुअल फंड में निवेश एक मात्र मापदंड नहीं होना चाहिए। किसी भी म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले उसके विषय में रिसर्च और डेटा विश्लेषण करना चाहिए। व्यक्तिगत सुझाव, विज्ञापन और ब्रांड नामों को ज्‍यादा महत्‍व न दें। निवेश करने से पहले फंड का ट्रैक रिकॉर्ड देखें और फिर निवेश करने का फैसला करें।

म्यूचुअल फंड बेचने से जुड़ी 7 अनिवार्य शर्तें जो आपको पता होनी चाहिए

Mutual Funds

म्यूचुअल फंड्स निवेशकों (इन्वेस्टर्स) के सबसे पसंदीदा बचत विकल्पों में से एक है। ये अच्छे रिटर्न्स देते हैं, बढ़ती महंगाई के साथ खुद को समायोजित (एडजस्ट) कर लेते हैं, अच्छी नकदी (लिक्विडिटी) देते हैं और अलग-अलग तरह के इन्वेस्टर्स की अलग-अलग प्रकार की रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से तैयार किये जाते हैं। दरअसल, एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) और ब्लूमबर्ग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के हिसाब से, साल 2014 के बाद से, इंडिपेंडेंट इन्वेस्टर्स (स्वतंत्र इन्वेस्टमेंट) के म्यूचुअल फंड्स अकाउंट का आकार दो गुना ज़्यादा बड़ा होकर 84 मिलियन का हो गया है। जबकि वहीं दूसरी तरफ, इस इंडस्ट्री की संपत्ति बढ़कर 370 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई है। आइये इस पर एक नज़र डालें –

bloomberg

ये आंकड़ें बड़े विश्वास के साथ इस बात की पुष्टि करते हैं कि म्यूचुअल फंड्स की लोकप्रियता के कारण इसमें होने वाले इन्वेस्टमेंट में बढ़ोतरी हो रही है।

इसलिए, आप म्यूचुअल फंड की बिक्री के लिए आसानी से ग्राहकों की खोज कर सकते हैं। हालांकि, म्यूचुअल फंड, किसी भी और तरह के इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट के मुकाबले, समझने में थोड़ा तकनीकी हैं। ऐसे में, आपके ग्राहक स्कीम से जुड़े रिटर्न को लेकर चिंतित हों सकते हैं, इसलिए आपको स्कीम से जुड़े गणित को समझने की ज़रूरत है ताकि आप अपने ग्राहकों को सबसे बढ़िया स्कीम बेच सकें। और इसके लिए आपके पास म्यूचुअल फंडस्कीमों का तकनीकी ज्ञान होना ज़रूरी होता है। इसके लिए, सात अति अनिवार्य म्यूचुअल फंड शर्तें हैं, जिन्हें आपको इस तरह की स्कीमों को बेचने से पहले जानना चाहिए –

एक एसेट मैनेजमेंट कंपनी वो कंपनी होती है जो रिटर्न जुटाने के लिए म्यूचुअल फंड के पोर्टफोलियो के निवेश के प्रबंधन (इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट) की जिम्मेदारी संभालती है। ऐसी कंपनी सेबी के साथ रजिस्टर्ड होती है और ये कंपनियां म्यूचुअल फंड स्कीमों के इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट के लिए फंड मैनेजर्स को बहाल करती हैं।

एयूएम का मतलब होता है एसेट्स अंडर मैनेजमेंट। एयूएम को उस कुल राशि के रूप में परिभाषित किया जाता है जो म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो के मौजूदा बाज़ार भाव का प्रतिनिधित्व करती है। एक हाई एयूएम पोर्टफोलियो इस बात के संकेत देता है कि इस म्यूचुअल फंड स्कीम में कई लोगों ने इन्वेस्मेंट किया है और यह फंड अच्छी ग्रोथ रेट से बढ़ा है।

एंट्री और एग्जिट लोड तब लगाएं जाते हैं जब कोई इन्वेस्टर स्कीम में इन्वेस्टमेंट करता है या अपना इन्वेस्टमेंट निकालकर स्कीम से बाहर हो जाता है। स्कीम में इन्वेस्टमेंट करते वक़्त एंट्री लोड लगाया जाता है। इस लोड से प्राप्त राशि को म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटरों या उन ब्रोकरों में बाँट दिया जाता है जिन्होंने बतौर म्यूच्यूअल फंड सेलर स्कीम लोगों को बेची होती है। लोड की इस राशि का इस्तेमाल उन सभी खर्चों को पूरा करने के लिए भी किया जाता है, जिसे म्यूचुअल फंड हाउस, स्कीम को बेचने के लिए खर्च करते हैं। इसकी गणना प्रतिशत के रूप में की जाती है और ये प्रतिशत निवेश की गई राशि के ऊपर निकाला जाता है। उदाहरण के लिए, यदि एंट्री लोड 1% है और रु 10,000 का इन्वेस्टमेंट किया जाता है, तो लोड की हिसाब रु 10,000 के 1% के रूप में रु 100 एंट्री लोड लिया जायगा। इसके बाद नेट इन्वेस्टमेंट की गणना के लिए लोड की इस रु 100 की राशि को कुल निवेश की राशि से घटाया जाएगा। उदाहरण के लिए, यहाँ नेट इन्वेस्टमेंट की राशि रु 9900 होगी।

वहीं दूसरी तरफ, एग्जिट लोड, म्यूचुअल फंड स्कीम से एग्जिट होने पर फंड वैल्यू से घटाये जाने वाली राशि होती है। यदि आप कम समय में स्कीम से बाहर निकलते हैं तो आमतौर पर ये लोड चार्जेस लागू होता है। इस लोड को एग्जिट के समय की कुल राशि के प्रतिशत के रूप व्यक्त किया जाता है। इसलिए, यदि आप अपने किसी ऐसे म्यूचुअल फंड में निवेश किया है जिसका मूल्य रु 20,000 रुपये है, और 1%, का एग्जिट लोड है, तो 200 रुपये लोड चार्जेस के रूप में काटे जाएंगे और आपको रु 19,800 नेट अमाउंट के रूप में मिलेंगे।

म्यूचुअल फंड स्कीमें, ओपन एंड क्लोज एंडेड हो सकती हैं। ओपन एंडेड स्कीम वे स्कीमें होती हैं जो अनिश्चित समय के इन्वेस्टमेंट म्यूचुअल फंड को समझना के लिए तैयार होती हैं। इस तरह की म्यूचुअल फंड्स स्कीमों में इन्वेस्ट किए गए फंड्स से एग्जिट करने का कोई निर्धारित समय नहीं होता है। इन्वेस्टर कभी भी इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं और कभी भी फंड्स से एग्जिट कर सकते हैं।

क्लोज एंडेड स्कीमें वे हैं जिनमें एक निश्चित समय सीमा के लिए इन्वेस्टमेंट किया जाता है। इसलिए, इस तरह की स्कीमों में इन्वेस्टमेंट के लिए एक निश्चित समय सीमा होती है, जिस समय के दौरान इनसे एग्जिट करने की अनुमति नहीं होती है। जैसे कि, म्यूचुअल फंड को समझना ईएलएसएस (इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम) एक तरह की क्लोज एंडेड स्कीम है, जिसके 3 साल के लॉक-इन पीरियड के दौरान इन्वेस्टमेंट को निकाला नहीं जा सकता है।

निवेश के ये तीनों तरीकें म्युचुअल फंड द्वारा इन्वेस्टमेंट या रिडीम करने के एक सुनियोजित तरीके की पेशकश करते हैं। आइये उन्हें एक-एक कर समझें –

  • एसआईपीका मतलब है सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान, जिसमें इन्वेस्टर म्यूचुअल फंड स्कीम में पहले से तय किसी छोटीराशि को, नियमित रूप से इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं
  • एसडब्ल्यूपी का मतलब है सिस्टमैटिक विद्ड्रॉअल प्लान जिसमें कि म्युचुअल फंड इन्वेस्टमेंट को रिडीम करने के लिए इन्वेस्टर द्वारा नियमित रूप से स्कीम से कुछ–कुछ राशि निकालनी होती है
  • एसटीपी का अर्थ है सिस्टेमैटिक ट्रांसफर प्लान। इस स्कीम के तहत, शुरूआती समय में, किसी विशेष म्यूचुअल फंड स्कीम में एकमुश्त राशि को इन्वेस्ट किया जाता है। उसके बाद, तय की हुई किसी छोटी राशि को उस म्यूचुअल फंड स्कीम से दूसरी स्कीम में ट्रांसफर कर दिया जाता है
  1. एक्स्पेंसेस रेशियो

म्युचुअल फंड्स, इन्वेस्टर्स से रूपये इकट्ठा कर फिर उसे अलग-अलग सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं। उन इंवेस्टमेंट्स के ज़रिये ज़्यादा से ज़्यादा रिटर्न पाने के लिए इन्वेस्टमेंट को नियमित रूप से प्रबंधित (मैनेज) किया जाता है। ये मैनेजमेंट मुफ्त में संभव शुल्क नहीं है। इसके लिए, म्यूचुअल फंड्स अपने फंड मैनेजरों को इन स्कीमों के संचालन और प्रबंधन संबंधी मेहनताना और म्यूचुअल फंड को समझना बाकी खर्चो के लिए जिम्मेदार होते हैं। इन चार्जेस को इन्वेस्टर्स से एक्स्पेंसेस रेशियो के रूप में लिया जाता है। स्कीम पर किये गए कुल खर्चों का हिसाब प्रतिशत के रूप में किया जाता है और ये प्रतिशत नेट एसेट्स वैल्यू (एनएवी) को कम करता है। इसलिए, एनएवी की गणना पोर्टफोलियो के मार्किट वैल्यू से एक्स्पेंसेस रेशियो काटने के बाद तय की जाती है और एनएवी का जो मूल्य आपको अंत में प्राप्त होता है वो एक्स्पेंसेस रेशियो को घटाने के बाद का मूल्य होता है।

एनएवी का म्यूचुअल फंड को समझना मतलब होता है नेट एसेट वैल्यू। यह म्यूचुअल फंड स्कीम के प्रति यूनिट के मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है। यदि आप एक म्यूचुअल फंड स्कीम में एक तय राशि का निवेश करते हैं, तो एनएवी उन यूनिट्स की संख्या तय करेगा जो आपको दिए जाएंगे। एनएवी की गणना म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो के बाज़ार मूल्य को उन सिक्योरिटीज की, जो पोर्टफोलियो में होती से संख्या से भाग देकर की जाती है। इसका सूत्र इस प्रकार है –

एनएवी = (पोर्टफोलियो के एसेट्स की वैल्यू – पोर्टफोलियो की लायबिलिटी की वैल्यू) / पोर्टफोलियो द्वारा रखी गई सिक्योरिटीज की संख्या

एनएवी की वैल्यू डायनामिक होती है और लगातार बदलती रहती है। यह इन्वेस्टर्स को फंड की परफॉरमेंस की समीक्षा करने में मदद करता है। म्यूचुअल फंड में इन्वेस्टमेंट और रिडेम्पशन जारी एनएवी के आधार पर किया जाता है। ये नियम म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट से संबंधित कुछ सबसे बुनियादी नियमों में से एक है। इसलिए, इन नियमों के बारे में पूरी जानकारी जुटाएं ताकि आप अपने ग्राहकों को आसानी से उनकी जरूरतों के हिसाब से सबसे बढ़िया म्यूचुअल फंड बेच सकें।

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