भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार

कारोबार की प्रमुख मुद्राएं

कारोबार की प्रमुख मुद्राएं
  • निर्यातकों को डॉलर की कमाई 5 दिन से अधिक होल्ड करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
  • एनआरआई अकाउंट (विदेशी मुद्रा) पर ब्याज दर बढ़ाया जाए तो डॉलर का प्रवाह बढ़ेगा।
  • गैर जरूरी सामान पर आयात शुल्क बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • आरबीआई को बैंकों को अमेरिकी डॉलर फिक्स्ड डिपॉजिट ड्राइव चलाने की सलाह देनी चाहिए। इसकी मैच्य़ोरिटी छह माह से दो साल होनी चाहिए। इसके अनुसार ब्याज दर में बढ़ोतरी करनी चाहिए।

प्रमुख मुद्रा जोड़े

सबसे सक्रिय रूप से कारोबार मुद्रा जोड़े के समूह मेजर के रूप में माना जाता है. वे इसलिए, वे अत्यधिक तरल कर रहे हैं, विदेशी मुद्रा बाजार का सबसे बड़ा हिस्सा शामिल है, और. प्रमुख मुद्रा जोड़े बाजार में उपलब्ध सबसे लोकप्रिय मुद्रा जोड़े, शामिल हैं. समूह का प्रमुख हिस्सा आप एक ही बार मंख दो ऐसे अमेरिकी डॉलर (USD), यूरो (EUR), जापानी येन (JPY), भारतीय रुपया (INR), स्विस फ्रैंक (CHF) के रूप में सबसे अधिक तरल मुद्राओं की कहां मिल सकती जोड़े शामिल , कैनेडियन डॉलर (सीएडी), ऑस्ट्रेलियन डॉलर (AUD) और न्यूजीलैंड डॉलर (NZD).

रुपया शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 8 पैसे चढ़ा

Uday sodhi

प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी मुद्रा में गिरावट और विदेशी निवेशकों के निवेश के बीच शुक्रवार को रुपया शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आठ पैसे चढ़कर 79.61 प्रति डॉलर पर पहुंच गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले 79.66 पर खुला और फिर शुरुआती सौदों में बढ़त दर्ज करते हुए 79.61 के स्तर पर आ गया। इस तरह स्थानीय इकाई ने पिछले बंद भाव के मुकाबले आठ पैसे की बढ़त दर्ज की।

रुपया बृहस्पतिवार को अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 26 पैसे की गिरावट के साथ 79.69 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.72 प्रतिशत गिरकर 108.92 पर आ गया। इसके अलावा यूरोप के केंद्रीय बैंक ने मुद्रास्फीति के मद्देनजर अपनी प्रमुख ब्याज दरों में 0.75 प्रतिशत की वृद्धि की है।

वहीं, वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.22 प्रतिशत बढ़कर 89.35 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था। शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने बृहस्पतिवार को शुद्ध रूप से 2,913.09 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे।

Dollar Index: डॉलर इंडेक्स क्यों महत्वपूर्ण है? अंतरराष्ट्रीय कारोबार में अमेरिकी मुद्रा की इतनी चलती क्यों है?

Dollar Index: डॉलर इंडेक्स क्यों महत्वपूर्ण है? अंतरराष्ट्रीय कारोबार में अमेरिकी मुद्रा की इतनी चलती क्यों है?

  • Date : 29/11/2022
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डॉलर अमेरिकी मुद्रा अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए सिर्फ एक महत्वपूर्ण मुद्रा है और इस पर सभी का ध्यान बना रहता है।

डॉलर इंडेक्स पर क्यों नजर रखती है सारी दुनिया

Importance of Dollar Index: जब भी अंतरराष्ट्रीय कारोबार की चर्चा होती है तो डॉलर इंडेक्स का आकलन जरूर होता है। फिर चाहे उसमें यूरोपीय यूरो या पाउंड के चढ़ने-उतरने की बात कारोबार की प्रमुख मुद्राएं हो, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बाजार में मंदी की बात हो, चीन और रूस की आर्थिक स्थिति की बात हो या फिर अन्य विदेशी मुद्राओं के फिसलने और उछलने की बात हो जब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार में मुद्रा (करेंसी) के बारे में कोई भी चर्चा हो। आइए जानते हैं कि अमेरिकी मुद्रा या डॉलर इंडेक्स सभी कारोबारियों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

डॉलर इंडेक्स का मतलब क्या कारोबार की प्रमुख मुद्राएं है?

डॉलर इंडेक्स सिर्फ अमेरिकी मुद्रा ही नहीं बल्कि दुनिया की 6 प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती आर कमजोरी के कारोबार की प्रमुख मुद्राएं आकलन का इंडेक्स है। इन 6 अलग-अलग करेंसियों में उन देशों की मुद्राएँ सम्मिलित हैं जो अमेरिका कारोबार में भागीदार हैं। इन 6 कारोबार की प्रमुख मुद्राएं मुद्राओं में, यूरो, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना, स्विस फ्रैंक आदि यूरोपीय मुद्राएँ शामिल हैं, साथ ही जापानी येन और कनाडाई डॉलर भी सम्मिलित हैं।

डॉलर इंडेक्स से अमेरिकी डॉलर की मजबूती का संकेत मिलता है। डॉलर इंडेक्स जितना चढ़ता है अमेरिकी मुद्रा अन्य मुद्राओं की तुलना में मजबूत होती है। वहीं डॉलर इंडेक्स के फिसलने से यह माना जाता है कि अमेरिकी मुद्रा कमजोर हो रही है।

यह भी पढ़ें: ७ वित्तीय नियम

डॉलर इंडेक्स में अन्य मुद्राओं का वेटेज

डॉलर इंडेक्स पर हर मुद्रा के विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) का अलग प्रभाव पड़ता है। इस मामले में सर्वाधिक वेटेज यूरो को दिया जाता है जबकि स्विस फ्रैंक का न्यूनतम वेटेज होता है।

यूरो 57.6%, जापानी येन 13.6%, ब्रिटिश पाउंड 11.9%, कैनेडियन डॉलर का वेटेज 9.1% है। वहीं स्वीडिश क्रोना 4.2% का वेटेज रखता है और स्विस बैंक 3.6% का।

इसका सीधा मतलब है जिस करेंसी का जितना अधिक वेटेज है उस करेंसी के उतार-चढ़ाव का इंडेक्स पर सर्वाधिक असर पड़ेगा।

डॉलर इंडेक्स के इतिहास पर नजर

1973 में अमेरिका की सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिज़र्व ने डॉलर इंडेक्स की शुरुआत की थी और उसका आधार (बेस) 100 रखा था। तब से लेकर आज तक डॉलर इंडेक्स में सिर्फ एक बार परिवर्तन किया गया है जब यूरोप के सभी देशों ने मिलकर एक साझा मुद्रा का चलन शुरू किया था। फ्रांसीसी फ्रैंक, जर्मन मार्क, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियम फ्रैंक आदि के स्थान पर यूरोप की साझा मुद्रा यूरो को इंडेक्स में सम्मिलित किया गया था। शुरुआत के समय से ही लेकर अब तक डॉलर इंडेक्स 90 से 110 अंकों के बीच बना रहा है। इसका उच्चतम स्तर 1984 में 165 अंकों के साथ था। 2007 में मंदी के दौर में इसका न्यूनतम स्तर आया 70 अंकों का था।

डॉलर इंडेक्स महत्वपूर्ण क्यों है?

पूरी दुनिया की नज़र जिस इंडेक्स पर बनी रहती है। इसका सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में किया जाता है। यूएस फेड के जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 1999 से लेकर 2019 के बीच अमेरिकी महाद्वीप में 96% कारोबार डॉलर में हुआ था। यूएस फेड की मानें तो 2021 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों द्वारा घोषित किए गए कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 60% भाग अमेरिकी डॉलर का है।

US Dollar Index Explained (USDX / DXY)

Importance of Dollar Index: जब भी अंतरराष्ट्रीय कारोबार की चर्चा होती है तो डॉलर इंडेक्स का आकलन जरूर होता है। फिर चाहे उसमें यूरोपीय यूरो या पाउंड के चढ़ने-उतरने की बात हो, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बाजार में मंदी की बात हो, चीन और रूस की आर्थिक स्थिति की बात हो या फिर अन्य विदेशी मुद्राओं के फिसलने और उछलने की बात हो जब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार कारोबार की प्रमुख मुद्राएं में मुद्रा (करेंसी) के बारे में कोई भी चर्चा हो। आइए जानते हैं कि अमेरिकी मुद्रा या डॉलर इंडेक्स सभी कारोबारियों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

डॉलर इंडेक्स का मतलब क्या है?

डॉलर इंडेक्स सिर्फ अमेरिकी मुद्रा ही नहीं बल्कि दुनिया की 6 प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती आर कमजोरी के आकलन का इंडेक्स है। इन 6 अलग-अलग करेंसियों में उन देशों की मुद्राएँ सम्मिलित कारोबार की प्रमुख मुद्राएं कारोबार की प्रमुख मुद्राएं हैं जो अमेरिका कारोबार में भागीदार हैं। इन 6 मुद्राओं में, यूरो, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना, स्विस फ्रैंक आदि यूरोपीय मुद्राएँ शामिल हैं, साथ ही जापानी येन और कनाडाई डॉलर भी सम्मिलित हैं।

डॉलर इंडेक्स से अमेरिकी डॉलर की मजबूती का संकेत मिलता है। डॉलर इंडेक्स जितना चढ़ता है अमेरिकी मुद्रा अन्य मुद्राओं की तुलना में मजबूत होती है। वहीं डॉलर इंडेक्स के फिसलने से यह माना जाता है कि अमेरिकी मुद्रा कमजोर हो रही है।

यह भी पढ़ें: ७ वित्तीय नियम

डॉलर इंडेक्स में अन्य मुद्राओं का वेटेज

डॉलर इंडेक्स पर हर मुद्रा के विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) का अलग प्रभाव पड़ता है। इस मामले में सर्वाधिक वेटेज यूरो को दिया जाता है जबकि स्विस फ्रैंक का न्यूनतम वेटेज होता है।

यूरो 57.6%, जापानी येन 13.6%, ब्रिटिश पाउंड 11.9%, कैनेडियन डॉलर का वेटेज 9.1% है। वहीं स्वीडिश क्रोना 4.2% का वेटेज रखता है और स्विस बैंक 3.6% का।

इसका सीधा मतलब है जिस करेंसी का जितना अधिक वेटेज है उस करेंसी के उतार-चढ़ाव का इंडेक्स पर सर्वाधिक असर पड़ेगा।

डॉलर इंडेक्स के इतिहास पर नजर

1973 में अमेरिका की सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिज़र्व ने डॉलर इंडेक्स की शुरुआत की थी और उसका आधार (बेस) 100 रखा था। तब से लेकर आज तक डॉलर इंडेक्स में सिर्फ एक बार परिवर्तन किया गया है जब यूरोप के सभी देशों ने मिलकर एक साझा मुद्रा का चलन शुरू किया था। फ्रांसीसी फ्रैंक, जर्मन मार्क, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियम फ्रैंक आदि के स्थान पर यूरोप की साझा मुद्रा यूरो को इंडेक्स में सम्मिलित किया गया था। शुरुआत के समय से ही लेकर अब तक डॉलर इंडेक्स 90 से 110 अंकों के बीच बना रहा है। इसका उच्चतम स्तर 1984 में 165 अंकों के साथ था। 2007 में मंदी के दौर में इसका न्यूनतम स्तर आया 70 अंकों का था।

डॉलर इंडेक्स महत्वपूर्ण क्यों है?

पूरी दुनिया की नज़र जिस इंडेक्स पर बनी रहती है। इसका सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में किया जाता है। यूएस फेड के जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 1999 से लेकर 2019 के बीच अमेरिकी महाद्वीप में 96% कारोबार डॉलर में हुआ था। यूएस फेड की मानें तो 2021 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों द्वारा घोषित किए गए कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 60% भाग अमेरिकी डॉलर का है।

डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर रुपया, लेकिन दूसरी मुद्राओं से बेहतर

रुपया सोमवार को डॉलर के मुकाबले अपने रिकॉर्ड निचले स्तर 80.40 रुपए पर पहुंच गया। रुपया भले ही बहुत कमजोर नजर आ रहा हो लेकिन इसकी एक दूसरी तस्वीर भी है। इसी दौरान रुपया अन्य प्रमुख मुद्राओं ब्रिटिश पाउंड यूरो और जापानी येन के मुकाबले मजबूत भी हुआ है।

नई दिल्ली, स्कन्द विवेक धर। रुपया सोमवार को डॉलर के मुकाबले अपने रिकॉर्ड निचले स्तर 80.40 रुपए पर पहुंच गया। इस साल रुपया अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 10% लुढ़क चुका है। इन आंकड़ों में रुपया भले ही बहुत कमजोर नजर आ रहा हो, लेकिन इसकी एक दूसरी तस्वीर भी है। इसी दौरान रुपया अन्य प्रमुख मुद्राओं ब्रिटिश पाउंड, यूरो और जापानी येन के मुकाबले मजबूत भी हुआ है। पाउंड के मुकाबले तो रुपए में 10 फीसदी की मजबूती आई है।

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बहरहाल, पहले बात डॉलर के मुकाबले रुपए में आई रिकॉर्ड गिरावट की। एचडीएफसी सिक्युरिटी रिसर्च रिटेल के एनालिस्ट दिलीप परमार के मुताबिक, जेपी मॉर्गन ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में भारत के बॉन्ड को शामिल करने में देरी, कच्चे तेल की कीमतों में तेज उछाल कारोबार की प्रमुख मुद्राएं और भारतीय शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) के शुद्ध विक्रेता बनने के चलते रुपए में ये गिरावट आ रही है। परमार के मुताबिक, ब्याज दर में अंतर, कमोडिटी की कीमतों में उछाल और बढ़ते घाटे का असर निकट भविष्य में भारतीय रुपए पर पड़ सकता है।

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लेकिन रुपए की यह गिरावट सिर्फ डॉलर के सामने है। अन्य प्रमुख विदेशी मुद्राओं पाउंड, यूरो और येन के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है। इस साल की शुरुआत में एक ब्रिटिश पाउंड की कीमत 100 रुपए से भी अधिक थी, जो अब 91.32 रुपए रह गई है। इसी तरह, यूरो जो इस साल जनवरी में 84.30 रुपए का था, अब 80 रुपए का रह गया है। 100 जापानी येन की कीमत जनवरी में 64.43 रुपए थी, जो अब 56.70 रुपए रह गई है।

आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स कारोबार की प्रमुख मुद्राएं के डायरेक्टर (कमोडिटीज एंड करेंसीज) नवीन माथुर कहते हैं, रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन वियतनाम तनाव जैसे भू-राजनैतिक कारणों से दुनिया की सभी करेंसी स्थिरता के लिए डॉलर को ट्रैक कर रही हैं। इधर, अमेरिकी केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहा है, जिससे डॉलर की मांग बढ़ रही है। कारोबार की प्रमुख मुद्राएं इसके चलते, रुपए समेत अन्य करेंसियां डिप्रेसिएट हो रही हैं। लेकिन, हर देश की करेंसी को उसके फंडामेंटल्स भी प्रभावित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए यूके की राजकोषीय हालत बहुत खराब है। उनका मिनी बजट बैक-फायर कर गया। इसके चलते पाउंड में रिकॉर्ड गिरावट आई है। ज्यादातर देशों में महंगाई से निपटने को प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि ग्रोथ की बात सेकंडरी हो गई है।

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कमोडिटी एडवायजरी फर्म केडिया कमोडिटीज के डायरेक्टर अजय केडिया भी माथुर से इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं, डॉलर में जितनी तेजी आई है, उतनी ही अन्य मुद्राओं कारोबार की प्रमुख मुद्राएं में गिरावट आई है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप पर एनर्जी संकट गहराया है। इसी वजह से पाउंड और यूरो में गिरावट आई है। येन की बात करें तो वहां भी अर्थव्यवस्था स्थिर नहीं है, हाल ही में वहां पूर्व-प्रधानमंत्री की हत्या हुई थी।

माथुर कहते हैं, इन सब के बीच भारत एक ब्राइट स्पॉट बना हुआ है। तमाम चुनौतियों के बीच हमारी ग्रोथ रेट इस साल 7% के करीब रहने की उम्मीद है। आरबीआई के पास मौजूद फॉरेक्स रिजर्व और अच्छी राजकोषीय नीति के चलते रुपया होल्ड कर रहा है। केडिया भी मानते हैं कि अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपए की स्थिति बेहतर है। उन्हाेंने कहा, हमारे यहां महंगाई कम है, हम किसी युद्ध का हिस्सा नहीं है। अर्थव्यवस्था में स्थिरता है। वर्तमान भू-राजनैतिक स्थिति को देखते हुए रुपए के 80.50 से 83.60 प्रति डॉलर के बीच रहने की उम्मीद है। आगे रुपए में मजबूती नजर आएगी।

रुपए को संभालने के लिए ये कदम उठाने की जरूरत

अर्थशास्त्री मनोरंजन शर्मा कहते हैं, डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए जल्द ठोस कदम उठाने होंगे। कुछ कदम तो तुरंत उठाए जा कारोबार की प्रमुख मुद्राएं सकते हैं।

  • निर्यातकों को डॉलर की कमाई 5 दिन से अधिक होल्ड करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
  • एनआरआई अकाउंट (विदेशी मुद्रा) पर ब्याज दर बढ़ाया जाए तो डॉलर का प्रवाह बढ़ेगा।
  • गैर जरूरी सामान पर आयात शुल्क बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • आरबीआई को बैंकों को अमेरिकी डॉलर फिक्स्ड डिपॉजिट ड्राइव चलाने की सलाह देनी चाहिए। इसकी मैच्य़ोरिटी छह माह से दो साल होनी चाहिए। इसके अनुसार ब्याज दर में बढ़ोतरी करनी चाहिए।

विश्व व्यापार में डॉलर से मुक्ति की मुहिम शुरू

डॉलर के अचानक मजबूत होने से कई देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर के विकल्प पर विचार करने लगे हैं।

मौजूदा भू-राजनैतिक परिस्थितियों ने भी ग्लोबल ट्रेड का तरीका बदला है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण भारत और रूस रुपया-रूबल में व्यापार करने पर सहमत हुए हैं। चीन और रूस के बीच भी युआन-रूबल में कारोबार हो रहा है। ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) में रूस के प्रतिनिधि पावेल न्याजेव ने पिछले दिनों कहा कि संगठन नई रिजर्व करेंसी बनाने पर विचार कर रहा है। आपसी कारोबार में उसी करेंसी का इस्तेमाल होगा। हालांकि नई करेंसी का गठन अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन डॉलर पर निर्भरता कम करने की गंभीर कोशिशें शुरू हो गई हैं। इसे ‘डि-डॉलराइजेशन’ कहा जा रहा है।

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