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एसआईटीबी में विदेशी मुद्रा डीलिंग डेस्क, सभी आधुनिक संचार सुविधाओं, रिउटरस स्वचालित-डीलिंग प्रणाली के माध्यम से अपनी सभी अधिकृत शाखाओं के साथ विदेशी मुद्रा लेनदेन के लिए ऑनलाइन भाव प्रदान करता है.

बैंक निर्यात और आयात के व्यापार में लगे हुए अपने ग्राहकों की विदेशी मुद्रा की आवश्यकताओं को पूरा करता है और एसआईटीबी सभी विश्व की प्रमुख मुद्राओं जैसे अमेरिकी डॉलर ($), स्टर्लिंग पाउंड, यूरो, स्विस फ्रैंक (स्विस फ्रैंक), जापानी येन और अन्य विदेशी मुद्राओं के रूपांतरण के लिए दरें प्रदान करता है. बैंक के ग्राहकों की सेवाओं में विभिन्न डेरिवेटिव उत्पाद और फॉरवर्ड कवर उपलब्ध कराने के द्वारा विदेशी मुद्रा जोखिम की हेजिंग शामिल हैं.

अपनी अधिकतर विदेशी शाखाएं उन स्थानों पर स्थित होने के कारण जहां अधिक मात्रा में अनिवासी भारतीय रह रहे हैं, बैंक अपने एनआरआई ग्राहकों को तुरंत और कुशलतापूर्वक अपने उत्पाद वितरित करने की स्थिति में है. उत्पाद की रेंज में प्रेषण सुविधाएं और भारतीय रुपए (एनआरई/एनआरओ) में जमा राशि की स्वीकृति के साथ नामित विदेशी मुद्राओं (एफसीएनआर) शामिल हैं. निवासी के साथ साथ भारत लौटने वाले भारतीय निवासी विदेशी मुद्रा खातों (आरएफसी) का लाभ उठा सकते हैं.

ट्रेजरी (विदेशी मुद्रा) उत्पाद के मामले में सहायता के लिए आप एसआईटीबी, मुंबई में हमारे निम्नलिखित प्रभारियों से संपर्क कर सकते है.

भारतीय व्यापार के लिए जोखिम को कम करेगा सीमापार लेन-देन में रुपये का उपयोग, एक्सपर्ट व्यू

हाल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भारतीय मुद्रा यानी रुपये में करने के लिए सरकार ने विदेश व्यापार नीति में बदलाव किया है। अब सभी तरह के पेमेंट बिलिंग और आयात-निर्यात में लेन-देन का निपटारा रुपये में हो सकता है। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण से देश को चौतरफा लाभ होंगे

राहुल लाल। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने हाल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भारतीय मुद्रा यानी रुपये में करने के लिए विदेश व्यापार नीति में बदलाव किया है। इससे सभी तरह के पेमेंट, बिलिंग और आयात-निर्यात में लेन-देन का निपटारा रुपये में हो सकता है। इस बारे में विदेश व्यापार महानिदेशलय (डीजीएफटी) ने भी एक नोटिफिकेशन जारी किया है। सरल भाषा में कहें तो यह रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया की तरफ भारत सरकार का पहला कदम है।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि के बाद लगातार कमजोर हो रहे रुपये और घटते विदेशी मुद्रा भंडार के बीच आरबीआइ ने इस ओर कदम बढ़ाएं हैं। अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपया अक्टूबर में 1.8 प्रतिशत फिसला है, जबकि 2022 में अब तक रुपया 11 प्रतिशत कमजोर हुआ है। क्या है रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण: रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सीमा पार लेन-देन में स्थानीय मुद्रा का उपयोग किया जाता है। इसमें आयात-निर्यात के लिए रुपये को प्रोत्साहन देने के अतिरिक्त अन्य चालू खाता एवं पूंजी खाता लेन-देन में भी इसका उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।

जहां तक रुपये का संबंध है तो यह चालू खाते में पूरी तरह परिवर्तनीय है, लेकिन पूंजी खाते में विदेशी मुद्रा वेब व्यापारी आंशिक रूप से। चालू और पूंजी खाता भुगतान संतुलन के दो घटक हैं। चालू खाते के घटकों में वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात और आयात तथा विदेश में निवेश से आय शामिल हैं। वहीं पूंजी खाते के घटकों में सभी तरह के विदेशी निवेश और एक देश की सरकार द्वारा दूसरे देश को ऋण देना शामिल हैं। इस तरह तकनीकी तौर पर रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का अर्थ है “पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता को अपनाना”। पूरी तरह से परिवर्तनीय पूंजी खाते का मतलब है कि विदेश में किसी भी संपत्ति को खरीदने के लिए आप कितने रुपये को विदेशी मुद्रा में परिवर्तित कर सकते हैं, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं हो।

क्यों है रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की आवश्यकता

वैश्विक मुद्रा बाजार के कारोबार में डालर की हिस्सेदारी 88.3 प्रतिशत है। इसके बाद यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग का स्थान आता है। वहीं रुपये की हिस्सेदारी मात्र 1.7 प्रतिशत है। दुनियाभर का 40 प्रतिशत ऋण डालर में जारी किया जाता है। डालर का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका के बाहर मौजूद है। डालर पर अत्यधिक निर्भरता के कारण वर्ष 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट भी दुनिया के समक्ष है। ऐसे में रुपये की वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी में वृद्धि के लिए भारतीय मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण आवश्यक है।

रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का महत्व

सीमापार लेन-देन में रुपये का उपयोग भारतीय व्यापार के लिए जोखिम को कम करेगा। मुद्रा की अस्थिरता से सुरक्षा न केवल व्यवसाय करने की लागत को कम करती है, बल्कि यह व्यवसाय के बेहतर विकास को भी सक्षम बनाती है, जिससे भारतीय व्यापार के विश्व स्तर पर बढ़ने की संभावना में सुधार होता है। यह विदेशी मुद्रा भंडार रखने की आवश्यकता को भी कम करता है। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार विनिमय दर की अस्थिरता को प्रबंधित करने में मदद करता है, लेकिन वह अर्थव्यवस्था पर एक लागत लगाता है। विदेशी मुद्रा पर निर्भरता कम करने से भारत बाहरी झटकों के प्रति कम संवेदनशील हो जाएगा।

लिहाजा अमेरिका में मौद्रिक सख्ती के विभिन्न चरणों और डालर को मजबूत करने के दौरान घरेलू व्यापार की अत्यधिक देनदारियों के बावजूद अंततः भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ ही होगा। भारत का अपनी मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय उधार लेने में सक्षम होना भी इसके विशिष्ट लाभ में सम्मिलित है। भारत के दीर्घकालिक विकास के लिए इसके फर्मों को विदेशियों से स्वतंत्र उधार लेने में सक्षम होना जरूरी है, ताकि वे अपने व्यवसाय को वित्तपोषित कर सकें। फर्मों द्वारा रुपये में अंतरराष्ट्रीय उधार लेना विदेशी मुद्रा की तुलना में अधिक सुरक्षित होगा। यह राजस्व स्रोत (जो रुपया है) के मुद्रा मूल्यवर्ग और कंपनियों के ऋण (जो विदेशी मुद्रा है) के मुद्रा मूल्यवर्ग के बीच एक बेमेल के जोखिम को कम करेगा।

ऐसे बेमेल जोखिम से अंततः फर्म दिवालियापन तक पहुंच सकते हैं। मुद्रा संकट की यह स्थिति थाइलैंड और इंडोनेशिया जैसी अर्थव्यवस्था में देखी भी गई है। जब कोई मुद्रा पर्याप्त रूप से अंतरराष्ट्रीय हो जाती है तो उस देश के नागरिक और सरकार अपनी मुद्रा में कम ब्याज दरों पर विदेश में बड़ी मात्रा में उधार लेने में सक्षम हो जाते हैं। रुपये का व्यापक अंतरराष्ट्रीय उपयोग भारत के बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्रों को भी अधिक व्यवसाय प्रदान करेगा। रुपये में परिसंपत्तियों की अंतरराष्ट्रीय मांग घरेलू वित्तीय संस्थानों में व्यापार लाएगी, क्योंकि रुपये में भुगतान को अंततः भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा ही नियंत्रित किया जाएगा। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण से देश की विशिष्ट आर्थिक प्रभाव में अभूतपूर्व वृद्धि हो जाएगी।

जब विदेशी रुपये पर भरोसा करेंगे तो वे मुद्रा विनिमय के माध्यम और विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में इसे रखने के लिए तैयार होंगे। जब कोई मुद्रा किसी अन्य देश के लिए आरक्षित मुद्रा बन जाती है तो मुद्रा जारी करने वाला देश इसे उसके पक्ष में विनिमय के लिए लीवरेज के रूप में उपयोग कर सकता विदेशी मुद्रा वेब व्यापारी है। रुपये के अंतराष्ट्रीयकरण के प्रयास इस समय क्यों : भारत में रुपये के अंतराष्ट्रीयकरण के प्रयास तब हो रहे हैं, जब डालर की तुलना में रुपया कमजोर हो रहा है। और रुपया को मजबूत करने के विदेशी मुद्रा वेब व्यापारी लिए आरबीआइ को भारी मात्रा में डालर की बिकवाली करनी पड़ रही है। ऐसे में आरबीआइ प्रयास कर रहा है कि जहां तक संभव हो अन्य वैसे देश जो इस समय विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में दबाव का सामना कर रहे हैं, उनसे निर्यात सेटलमेंट रुपये में हो। इस तरह के सुझाव एसबीआइ के रिसर्च में भी दी गई थी।

एसबीआइ के इन सुझावों को आरबीआइ और केंद्रीय वित्त मंत्रालय क्रियान्वित करते हुए नजर आ रहे हैं। इससे पहले पिछली सदी के सातवें दशक में कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान जैसे खाड़ी देशों में रुपया स्वीकार किया गया था। तब भारत के पूर्वी यूरोप के साथ भी भुगतान समझौते थे। हालांकि 1965 के आपपास इन व्यवस्थाओं को समाप्त कर दिया गया था। इससे स्पष्ट है कि आरबीआइ के ये प्रयास सफल हो सकते हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों के पूर्व 2019 तक भारत ईरान से रुपये में या अनाज तथा दवाओं जैसे महत्वपूर्ण उत्पादों के बदले तेल खरीदता रहा है।

यूक्रेन संकट के दौरान खुद रूस ने ही भारत को स्थानीय करेंसी में व्यापार करने का आफर दिया था और भारत और रूस के बीच अभी जो पेट्रोलियम का व्यापार हो रहा है, वह चीन की करेंसी युआन के जरिये हो रहा है। लेकिन अब भारत खुद अपनी करेंसी में व्यापार कर सकता है। इस वित्त वर्ष 2022-23 में भारत द्वारा रूस से लगभग 36 अरब डालर का तेल खरीदे जाने की संभावना है। इससे स्पष्ट है कि भारत रूस को जो 36 अरब डालर देने वाला था, वह अब नहीं देना होगा। इसकी जगह भारत रूस को अपनी मुद्रा यानी रुपया में भुगतान करेगा। वहीं रूस को भारत में व्यापार के लिए भारतीय मुद्रा भंडार मिलेगा, जो अंततः भारतीय बांड के लिए स्वागतयोग्य मांग प्रदान करेगा।

किन देशों के साथ खुल सकते हैं दरवाजे

रूस के अलावा ईरान, अरब देश और यहां तक कि श्रीलंका जैसे देशों के लिए भी भारत के दरवाजे खुल सकते हैं। ईरान और रूस के खिलाफ व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हैं। लिहाजा अब वे दोनों आसानी से बिना प्रतिबंधों का उल्लंघन किए भारत के साथ तीव्र व्यापार रुपये में कर सकते हैं। वहीं श्रीलंका जैसे देश, जिनका डालर खत्म हो चुका है, उनके लिए भारत से रुपये में सामान खरीदना एक वरदान जैसा होगा। कुल मिलाकर भारत का उद्देश्य है कि 2047 तक रुपये को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के रूप में स्थापित करना। सरकार चाहती है कि जब देश आजादी की 100वीं वर्षगांठ मनाए तब भारतीय करेंसी बुलंदियों पर हो।

विदेशी मुद्रा कार्ड दरें

100 इकाइयों के लिए उद्धृत जेपीवाई को छोड़कर विदेशी मुद्रा की एक इकाई के लिए रुपयों में उद्धृत दरें है.

दिनांक 22/11/2022 को 09:30 AM बजे की कार्ड दर

  • प्रीपेड विदेशी मुद्रा कार्ड क्रय दर
  • प्रीपेड विदेशी मुद्रा कार्ड बिक्री दर
  • सौ इकाई में जेपीवाय की सांकेतिक दरें
  • इस प्रकाशन में शामिल सभी दरें सांकेतिक हैं और मौजूदा बाजार के अनुरूप परिवर्तित होंगी.

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  • पैन कार्ड
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  • यह खाता 18 वर्ष व इससे अधिक आयु के निवासी भारतीय व्यक्तियों (जिनका कोई राजनीतिक एक्सपोजर नहीं) हो द्वारा खोला जा सकता है.
  • यह सुविधा वैसे ग्राहकों के लिए है जिनका बैंक में कोई खाता नहीं है
  • आपको अच्छे नेटवर्क तथा प्रकाशयुक्त क्षेत्र में होना चाहिए

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वक्त की जरूरत है रुपये में व्यापार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य के मुकाबले मजबूत और स्थिर होगी भारतीय मुद्रा

रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करनी होगी जिसके लिए भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

[डा. सुरजीत सिंह]। हाल में जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। डालर के निरंतर मजबूत होने से महत्वपूर्ण मुद्राएं कमजोर पड़ने लगी हैं। विभिन्न देशों के विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगे हैं, जिसके चलते वैश्विक वृद्धि दर घट रही है। आर्थिक परिदृश्य बदलने से वैश्विक भू-राजनीति भी बदल रही है। भारत सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार करना प्रारंभ किया है कि इन बदलते वैश्विक हालात के लिए जिम्मेदार अमेरिकी डालर पर निर्भरता को कैसे कम किया जाए?

विश्व की जनसंख्या आठ अरब के आंकड़े को पार कर गई। फाइल फोटो

इस संदर्भ में आरबीआइ ने एक नई शुरुआत करते विदेशी मुद्रा वेब व्यापारी हुए यह घोषणा की कि निर्यातक एवं आयातक रुपये में भी व्यापार कर सकेंगे। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना एवं डालर में होने वाली व्यापार निर्भरता को कम करना विदेशी मुद्रा वेब व्यापारी है। रुपये में होने वाले पारस्परिक लेनदेन के लिए आरबीआइ ने एक प्रणाली विकसित की है। इससे निर्यात और आयात की कीमत और चालान सभी कुछ रुपये में ही होगा।

विश्व की बदलती आर्थिक परिस्थितियों में बहुत से देश न चाहते हुए भी अपना व्यापार डालर में करने को मजबूर हैं। भारत 86 प्रतिशत व्यापार डालर में करता है। भारत के आयात, निर्यात से ज्यादा होने के कारण अधिक डालर की आवश्यकता होती है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान भारत का कुल निर्यात 229.05 अरब डालर एवं आयात 378.53 अरब डालर का हुआ। रुपये-डालर की विनिमय दर को बनाए रखने के लिए आरबीआइ 50 अरब डालर से अधिक व्यय कर चुका है। भारत की तरह दुनिया का भी अधिकांश व्यापार डालर में ही होता है। विश्व के सभी देश डालर के सापेक्ष अपनी-अपनी विनिमय दर को स्थिर करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज की दर को बढ़ा दिया है, जिससे विश्व के धन का प्रवाह अमेरिका की तरफ होने लगा है। इससे डालर विदेशी मुद्रा वेब व्यापारी और मजबूत होता जा रहा है।

इन परिस्थितियों में डालर के दबदबे को कम करने के लिए भारत सरकार ने सही समय पर सही पहल की है। रुपये में व्यापार करने का फैसला ऐसे समय में आया है, जब दुनिया के अधिकतर देश न सिर्फ मुद्रा भंडार में कमी का सामना कर रहे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निपटान में कठिनाइयों से भी जूझ रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भारत की यह व्यवस्था विनिमय दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के जोखिमों से भी सुरक्षा प्रदान करेगी। यह उन भारतीय निर्यातकों की समस्या को कम करेगी, जिनका भुगतान युद्ध के कारण अटका हुआ है। यह रूस और ईरान जैसे देश के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में मददगार होगी, जिन पर अमेरिकी प्रतिबंध है। रुपये में व्यापार से विश्व भर में न सिर्फ इसकी स्वीकृति बढ़ेगी, बल्कि विश्व में भारत का अर्थिक स्तर भी बढ़ेगा।

विदेश मंत्रालय के सार्थक प्रयासों का ही नतीजा है कि अनेक देशों विशेष रूप से श्रीलंका, मालदीव, विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देश, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने भी रुपये में व्यापार करने में अपनी सहमति व्यक्त की है। भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए रूस सहर्ष तैयार है। रुपये-रूबल में व्यापार के बाद रुपया-रियाल एवं रुपया-टका में व्यापार की दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका है। यदि इन सभी देशों को किया जाने वाला भुगतान रुपये में होगा तो इसका सीधा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा। श्रीलंका की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह भी भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए तैयार है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में रुपया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करेगा।

कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह व्यवस्था उन देशों में ही सफल हो पाएगी, जहां आयात और निर्यात लगभग बराबर है। वे यह भी प्रश्न करते हैं कि यह व्यवस्था उन देशों में कैसे लागू होगी, जिन देशों के पास बैलेंस शेष रह जाएगा। भारत सरकार इसके लिए कई क्षेत्रीय समूहों जैसे ब्रिक्स के साथ एक रिजर्व मुद्रा की व्यवस्था बना सकती है, जिससे जुड़े हुए देश पारस्परिक रूप से आपसी मुद्राओं में व्यापार कर सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस व्यवस्था के सफल होते ही विश्व का आर्थिक खेल ही बदल जाएगा।

इस प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के महत्व को कम करना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपये को बेहतर बनाने की एक शुरुआत करना है। यह समय की मांग भी है कि भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार एक-दूसरे के लिए अधिक खुले विकल्प रखें एवं विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों के संबंध में रुपये को अधिक उदार बनाएं। इसके लिए आवश्यक है कि रुपये के संदर्भ में एक मजबूत विदेशी मुद्रा बाजार बनाया जाए। बैंकिंग क्षेत्र की सुदृढ़ता के लिए आवश्यकतानुसार सुधार निरंतर जारी रहने चाहिए।

पिछली सदी के नौवें दशक में जब भारत एक बंद अर्थव्यवस्था थी, विदेशी मुद्रा दुर्लभ थी और डालर ‘भगवान’ था। बदलते समय के साथ रूस एवं चीन ने हमारे समक्ष उदाहरण पेश किया कि डालर के बिना भी अर्थव्यवस्था को चलाया जा सकता है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत और स्थिर बनेगा। रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में भी वृद्धि करनी होगी, जिसके लिए भारत को एक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी, जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

विदेशी मुद्रा: व्यापारिक मुद्राओं के लिए सबसे बड़ा, सबसे अधिक तरल बाजार

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