शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है

Share Market Crash: जानें क्यों भड़भड़ाकर गिर रहे हैं भारतीय शेयर बाजार, क्या हैं इसके कारण
अमेरिकी महंगाई दर को लेकर जहां बाजार का अलुमान था कि या 8.3 प्रतिशत पर रहेगा वहीं यह 8.6 प्रतिशत आया। इसे देखते हुए अमेरिकी फेडरल रिजर्व हॉकिश रुख अपना सकता है। ऐसी परिस्थिति इक्विटी जैसे रिस्की एसेट्स के लिए नकारात्मक है
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। पिछले कुछ हफ्तो से भारतीय शेयर बाजारों में गिरावट देखने को मिल रही है। विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार अपने पैसे भारतीय पूंजी बाजार से निकाल रहे हैं। सोमवार को शुरुआती कारोबार के दौरान बीएसई का सेंसेक्स 1568.02 अंक टूट गया और 52734.98 के स्तर पर आ गया। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजिस्ट वी के विजयकुमार के अनुसार, अल्पावधि के बाजार रुझान कमजोर नजर आ रहे हैं। अमेरिकी महंगाई दर को लेकर जहां बाजार का अनुमान था कि या 8.3 प्रतिशत पर रहेगा, वहीं यह 8.6 प्रतिशत आया। इसे देखते हुए अमेरिकी फेडरल रिजर्व हॉकिश रुख अपना सकता है। ऐसी परिस्थिति रिस्की एसेट्स जैसे इक्विटी के लिए नकारात्मक है। खास तौर से तक जब वैश्विक ग्रोथ में गिरावट देखी जा रही हो। भारतीय शेयर बाजार में स्थिरता तभी आएगी जब अमेरिकी शेयर बाजार स्थिर होते हैं।
फॉरेन पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भी निवेशकों की धारणाओं को प्रभावित किया है। FPIs लगातार 8 महीनों से शुद्ध बिकवाल बने हुए हैं। जून में अब तक उन्होंने 13,888 शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है करोड़ रुपये की बिकवाली की है। इसके साथ ही इस साल अबतक FPIs ने 1,81,043 करोड़ के शेयरों की बिकवाली की है।
कोटक सिक्योरिटीज की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, मई में अमेरिका की महंगाई दर 8.60 प्रतिशत रही जो 40 साल में सबसे अधिक है। पिछले कुछ महीनों से अमेरिका में उपभोक्ता मूल्य में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। अब इस बात शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है पर चर्चाएं गरम हैं कि अमेरिकी फेडेरल रिजर्व महंगाई पर नियंत्रण के लिए सख्त मौद्रिक नीति अपनाएगा और ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा। वैश्विक शेयर बाजारों में आई गिरावट की यह भी एक मुख्य वजह है। शुकवार को अमरिकी महंगाई दर के आंकड़ों के शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है आने के बाद इक्विटी और कमोडिटीज बाजारों में गिरावट देखी गई साथ ही अमेरिकी डॉलर में तेज बढ़त दर्ज की गई।
IIFL Wealth के सीनियर एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट सलिल कपूर ने बताया कि वैश्विक और घरेलू स्तर पर मौद्रिक नीति में सख्ती से शेयर बाजारों में अस्थिरता है। भारतीय शेयर बाजार पहले ही रेपो रेट में बढ़ोतरी को आत्मसात कर रहे हैं, इसलिए नीतिगत दरों की घोषणा के बाद यील्ड पर ज्यादा बड़ा असर नहीं देखा गया। यील्ड कर्व और स्वैप कर्व को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि शेयर बाजार रेपो रेट में मामारी-पूर्व वृद्धि के अनुमानों को लेकर चल रहा है। जोखिम समायोजित आधार पर शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है 3-5 साल के बॉन्ड का यील्ड कर्व आकर्षक लग रहा है।
Share Market Crash: जानें क्यों भड़भड़ाकर गिर रहे हैं भारतीय शेयर बाजार, क्या हैं इसके कारण
अमेरिकी महंगाई दर को लेकर जहां बाजार का अलुमान था कि या 8.3 प्रतिशत पर रहेगा वहीं यह 8.6 प्रतिशत आया। इसे देखते हुए अमेरिकी फेडरल रिजर्व हॉकिश रुख अपना सकता है। ऐसी परिस्थिति इक्विटी जैसे रिस्की एसेट्स के लिए नकारात्मक है
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। पिछले कुछ हफ्तो से भारतीय शेयर बाजारों में गिरावट देखने को मिल रही है। विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार अपने पैसे भारतीय पूंजी बाजार से निकाल रहे हैं। सोमवार को शुरुआती कारोबार के दौरान बीएसई का सेंसेक्स 1568.02 अंक टूट गया और 52734.98 के स्तर पर आ गया। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजिस्ट वी के विजयकुमार के अनुसार, अल्पावधि के बाजार रुझान कमजोर नजर आ रहे हैं। अमेरिकी महंगाई दर को लेकर जहां बाजार का अनुमान था कि या 8.3 प्रतिशत पर रहेगा, वहीं यह 8.6 प्रतिशत आया। इसे देखते हुए अमेरिकी फेडरल रिजर्व हॉकिश रुख अपना सकता है। ऐसी परिस्थिति रिस्की एसेट्स जैसे इक्विटी के लिए नकारात्मक है। खास तौर से तक जब वैश्विक ग्रोथ में गिरावट देखी जा रही हो। भारतीय शेयर बाजार में स्थिरता तभी आएगी जब अमेरिकी शेयर बाजार स्थिर होते हैं।
फॉरेन पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भी शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है निवेशकों की धारणाओं को प्रभावित किया है। FPIs लगातार 8 महीनों से शुद्ध बिकवाल बने हुए हैं। जून में अब तक उन्होंने 13,888 करोड़ रुपये की बिकवाली की है। इसके साथ ही इस साल अबतक FPIs ने 1,81,043 करोड़ के शेयरों की बिकवाली की है।
कोटक सिक्योरिटीज की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, मई में अमेरिका की महंगाई दर 8.60 प्रतिशत रही जो 40 साल में सबसे अधिक है। पिछले कुछ महीनों से अमेरिका में उपभोक्ता मूल्य में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। अब इस बात पर चर्चाएं गरम हैं कि अमेरिकी फेडेरल रिजर्व महंगाई पर नियंत्रण के लिए सख्त मौद्रिक नीति अपनाएगा और ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा। वैश्विक शेयर बाजारों में आई गिरावट की यह भी एक मुख्य वजह है। शुकवार को अमरिकी महंगाई दर के आंकड़ों के आने के बाद इक्विटी और कमोडिटीज बाजारों में गिरावट देखी गई साथ ही अमेरिकी डॉलर में तेज बढ़त दर्ज की गई।
IIFL Wealth के सीनियर एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट सलिल कपूर ने बताया कि वैश्विक और घरेलू स्तर पर मौद्रिक नीति में सख्ती से शेयर बाजारों में अस्थिरता है। भारतीय शेयर बाजार पहले ही रेपो रेट में बढ़ोतरी को आत्मसात कर रहे हैं, इसलिए नीतिगत दरों की घोषणा के बाद यील्ड पर ज्यादा बड़ा असर नहीं देखा गया। यील्ड कर्व और स्वैप कर्व को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि शेयर बाजार रेपो रेट में मामारी-पूर्व वृद्धि के अनुमानों को लेकर चल रहा है। जोखिम समायोजित आधार पर 3-5 साल के बॉन्ड का यील्ड कर्व आकर्षक लग रहा है।
क्या है सेंसेक्स और कैसे घटता-बढ़ता है शेयर बाजार?
(Economy) और इससे जुड़े तथ्यों को आम जीवन से जोड़कर नहीं देख पाते. यही कारण है कि इन तथ्यों को बिजनेस की बातें समझकर हम ज्यादातर ध्यान नहीं देते हैं. हां, पर जब कोई न्यूज ब्रेकिंग न्यूज बनकर अखबारों, न्यूज चैनलों की सुर्खियों में होती है तो हम समझना जरूर चाहते हैं कि आखिर यह है क्या और इतना महत्वपूर्ण क्यों है? ऐसी ही खबरों में आजकल सेंसेक्स (Sensex) की खबर है. सेंसेक्स (Sensex) की खबरें यूं तो हर दिन होती हैं, किंतु आजकल लगभग हर अखबार और न्यूज चैनल पर इसकी खबरें प्रमुखता से आ रही हैं. रुपया गिरा तो सेंसेक्स गिरा, नारायण मूर्ति(Narayan Murthy) ने इंफोसिस (Infosys) दुबारा ज्वाइन किया तो सेंसेक्स उठा आदि. आखिर क्या है यह सेंसेक्स (Sensex) और इसके गिरने-उठने के कारण क्या हैं?
सेंसेक्स (Sensex) या संवेदी सूचकांक भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) का एक महत्वपूर्ण कारक है. सेंसेक्स (Sensex) का सामान्य अर्थ है सेंसिटिव इंडेक्स (sensitive index) या संवेदी सूचकांक. भारत में इसके अंतर्गत दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज मुंबई शेयर बाजार (Bombay Stock Exchange या BSE) तथा एनएसई (National Stock Exchange या NSE) आते हैं. सामान्यतया यह बीएसई (BSE) के लिए जाना जाता है. बीएसई (BSE) के अंतर्गत 30 प्रमुख भारतीय कंपनियां आती हैं. ये कंपनियां एक प्रकार से भारतीय बाजार का ट्रेंड सेट करने का काम करती हैं. सरल शब्दों में भारत की बड़ी कंपनियों के शेयरों की कीमतों (Shares Price) को आंकने के लिए एक सूचकांक बनाया गया है जो बाजार में इन कंपनियों के शेयरों की बढ़ती-घटती कीमतों पर नजर रखता है. यही सूचकांक सेंसेक्स (Sensex) कहलाता है.
कैसे बढ़ते-घटते हैं शेयरों के मूल्य?
(Shares Price) गिर रहे हैं, तो सेंसेक्स (Sensex) गिर जाता है.
शेयरों की कीमतों के गिरने-उठने का शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है महत्वपूर्ण कारण होता है कंपनी का प्रदर्शन. अगर कंपनी ने बाजार में कोई नया, बड़ा, हिट प्रोजेक्ट लांच किया, तो कंपनी के शेयरों के दाम (Shares Price) बढ़ जाते हैं. इसी प्रकार कंपनी अगर किसी क्राइसिस या मुश्किल से गुजर रही हो, तो इसके शेयर के दाम (Shares Price) घट जाते हैं. अभी कुछ दिनों पहले इंफोसिस (Infosys) के भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों में दूसरे पायदान पर आने से उसके शेयरों के दाम (Shares Price) लगातार गिर रहे थे. इसी दबाव में इसके फाउंडर नारायण मूर्ति (Narayan Murthy) ने दुबारा कंपनी ज्वाइन की. लेकिन उनके ज्वाइन करते ही इंफोसिस (Infosys) के शेयर मूल्य (Shares Price) बढ़ गए. शेयरों के दाम घटना ‘सेंसेक्स में गिरावट’ कहलाता है और शेयरों के दाम (Shares Price) बढ़ना ‘सेंसेक्स में उछाल’ कहलाता है.
सेंसेक्स मापने का तरीका
(Free Float Market Capitalisation) विधि के द्वारा सेंसेक्स (Sensex) मापा जाता है.
सेंसेक्स का महत्व
शेयर बाजार किसी भी देश की अर्थव्यवस्था (Economy) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह बाजार में आवश्यक मनी फ्लो को बनाए रखता है. दूसरे शब्दों में बाजार तथा अर्थव्यवस्था (Economy) की तरलता को बनाए रखने में शेयर बाजार का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है.
Why Share Market Falling : करीब 20 साल बाद आई यह सबसे तेज रिकवरी कहीं छलावा तो नहीं! आखिर क्यों गिर रहा मार्केट?
Why Share Market Falling : जून के मध्य के निचले स्तर से एनएसई निफ्टी-50 इंडेक्स में 14 फीसदी से अधिक का उछाल दर्ज हुआ था। महीनों तक बिकवाल रहने के बाद विदेशी निवेशकों (Foreign Investors) की खरीदारी शुरू होने से यह तेजी आई। डॉलर के कमजोर होने और कमोडिटी की कीमतों में अपेक्षा से अधिक तेजी से गिरावट के बीच विदेशी निवेशक भारत में शुद्ध बिकवाल से शुद्ध खरीदार हुए।
शेयर बाजार में आज आई भारी गिरावट
हाइलाइट्स
- शेयर बाजार में सोमवार को आई बड़ी गिरावट
- सेंसेक्स ने लगाया 872 अंक का गोता, निफ्टी 17,500 से नीचे
- बाजार में आई थी 2003 के बाद की सबसे तेज रिकवरी
- विदेशी निवेशकों की खरीदारी जारी रहने को लेकर संशय में एक्सपर्ट
नई दिल्ली : शेयर बाजार में जो दिखता है, वो अक्सर होता नहीं है। शेयर मार्केट (Share Market) में पैसा लगाने वाले लोगों को यह बात कहते आपने सुना होगा। लेकिन इस समय लोगों का संदेह काफी बढ़ गया है। यह संदेह है, बाजार में तेजी से आई रिकवरी पर। भारतीय शेयर बाजार में करीब 2 दशकों की सबसे तेज रिकवरी हुई है। वैश्विक अस्थिरता के बीच विदेशी निवेशकों की खरीदारी (Foreign Buying) जारी रहेगी या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। जून के मध्य के निचले स्तर से एनएसई निफ्टी-50 इंडेक्स में 14 फीसदी से अधिक का उछाल दर्ज हुआ था। महीनों तक बिकवाल रहने के बाद विदेशी निवेशकों (Foreign Investors) की खरीदारी शुरू होने से बाजार में तेजी आई।
केवल 39 सत्रों में ही आ गई भारी रिकवरी
विदेशी निवेशकों की खरीदारी से बाजार में तेजी से रिकवरी हुई। इससे केवल 39 सत्रों में बाजार ओवरसोल्ड क्षेत्र से मजबूत ओवरबॉट जोन में आ गया। यह साल 2003 के बाद बाजार में सबसे तेज रिकवरी है।
विदेशी निवेशकों के रुख में बदलाव की पुष्टि होना बाकी
वाटरफील्ड एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड में सूचीबद्ध निवेश के मुख्य निवेश अधिकारी कुणाल वालिया ने कहा, "भारत के संबंध में विदेशी निवेशकों के रुख में मौजूदा बदलाव की पुष्टि की जानी बाकी है।" उन्होंने कहा कि देश राजकोषीय और चालू खाता घाटे दोनों का सामना कर रहा है, जो विदेशी व्यापारियों के लिए "चिंताजनक आर्थिक संकेत" हैं।
डॉलर के गिरने और कमोडिटीज में राहत का मिला फायदा
डॉलर के कमजोर होने और कमोडिटी की कीमतों में अपेक्षा से अधिक तेजी से गिरावट के बीच विदेशी निवेशक भारत में शुद्ध बिकवाल से शुद्ध खरीदार हुए हैं। तेल और बेस मेटल्स सहित कमोडिटीज की कीमतें जून में पीक स्तर से 10 से 20 फीसदी गिर गईं। यह भारत जैसे शुद्ध आयातकों के लिए बड़ी राहत है।
कमोडिटी की कीमतों पर जोखिम बरकरार
बैंक ऑफ अमेरिका के विश्लेषक अमीश शाह ने कहा, "हमें उम्मीद नहीं थी कि वैश्विक कारकों में इतनी जल्दी सुधार होगा।" उन्होंने कहा, "लो पोजिशनिंग" और शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है अन्य उभरते बाजारों में कुछ निवेश विकल्पों के कारण वैश्विक निवेशकों का इनफ्लो फिर से शुरू हुआ। शाह भी विदेशी खरीदारी की स्थिरता को लेकर संशय में हैं। उन्होंने कहा कि ग्रोथ पर फोकस करने के लिए चीन की आर्थिक नीति में बदलाव हो सकते हैं। इससे क्रूड और दूसरी कमोडिटी की कीमतों में तेजी आ सकती है।
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लड़खड़ाकर गिरा बाजार
घरेलू शेयर बाजारों में गिरावट का सिलसिला सोमवार को भी जारी रहा। बीएसई सेंसेक्स (BSE Sensex) 872.28 अंक लुढ़ककर बंद हुआ। वैश्विक बाजारों में नकारात्मक रुख के बीच बैंकिंग शेयरों (Banking Stocks) में गिरावट से बाजार लुढ़का। सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में नुकसान में खुला और अंत में 872.28 अंक यानी 1.46 फीसदी लुढ़ककर 58,773.87 अंक पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान एक समय यह 941.04 अंक तक नीचे टूट गया था। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी (Nifty) भी 267.75 अंक यानी 1.51 फीसदी की गिरावट के साथ 17,490.70 अंक पर बंद हुआ।
विदेशी बाजारों का हाल
एशिया के अन्य बाजारों में दक्षिण कोरिया का कॉस्पी, जापान का निक्की और हांगकांग का हैंगसेंग नुकसान में रहे। जबकि चीन का शंघाई कंपोजिट लाभ में शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है रहा। यूरोप के प्रमुख बाजारों में शुरुआती कारोबार में गिरावट का रुख रहा। अमेरिका में वॉल स्ट्रीट में शुक्रवार को नुकसान रहा था। शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) शुद्ध लिवाल रहे। उन्होंने शुक्रवार को 1,110.90 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर खरीदे।
(ब्लूमबर्ग के इनपुट के साथ)
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