अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है

आर्थिक संवृद्धि और विकास में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का महत्व
प्रश्न: आर्थिक विकास की द्रुत गति को हासिल करने में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की भूमिका को बखूबी मान्यता प्राप्त है। भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्या लाभ हैं? विश्व व्यापार में अपनी भागीदारी बढ़ाने में भारत द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
दृष्टिकोण
- आर्थिक संवृद्धि और विकास में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- भारत पर ध्यान केंद्रित करते हुए विकासशील देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों का आकलन कीजिए।
- वैश्विक व्यापार में अपनी भागीदारी को बेहतर करने में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
- उत्तर के अंत में इस सम्बन्ध में सुझाव दीजिए।
उत्तर
2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के तहत अंतरराष्ट्रीय व्यापार को समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ाने एवं निर्धनता में कमी हेतु एक प्रमुख कारक के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। भारत की विदेश व्यापार नीति में 2019-20 तक देश की वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात को 900 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार इसकी कुल GDP का लगभग 20% है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विकासशील देशों को उनकी आगतों की लागत में कमी करने तथा निवेश के माध्यम से वित्त प्राप्त करने में सहायता प्रदान करके उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है।
- यह विकासशील देशों को नए बाजारों और नई सामग्रियों तक पहुँच की अनुमति प्रदान कर निर्यात विविधीकरण को सुगम बनाता है जो नई उत्पादन संभावनाओं हेतु मार्ग प्रशस्त करता है।
- यह अनुसंधान एवं विकास में निवेश (FDI के माध्यम से भी), प्रौद्योगिकी और व्यावहारिक ज्ञान के विनिमय में सहायता प्रदान कर नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
- व्यापार में खुलापन; नए बाजारों की स्थापना, अनावश्यक बाधाओं की समाप्ति और निर्यात के सरलीकरण द्वारा स्थानीय कंपनियों के लिए व्यापारिक अवसरों का विस्तार करता है।
- व्यापार आर्थिक क्षेत्रकों को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसरों का सृजन करता है। इससे नौकरियों में स्थायित्व तथा अधिकतम आय प्राप्त होती है जिसके परिमाणस्वरूप जीवन स्तर में वृद्धि होती है।
- व्यापार शांतिपूर्ण एवं परस्पर लाभकारी विनिमय के माध्यम से लोगों को एक साथ लाकर राष्ट्रों के मध्य परस्पर संबंधों को सुदृढ़ता प्रदान करते हुए शांति व स्थिरता में योगदान देता है।
विकास अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण पहलू है। केवल आंतरिक उपभोग द्वारा संचालित विकास सीमित होता है जो शीघ्र ही अपनी अधिकतम सीमा तक पहुँच कर संतृप्त हो जाता है। किसी भी देश के लिए विकास के क्रम में अपनी सीमाओं के बाहर के आर्थिक अभिकर्ताओं के साथ व्यापार करना आवश्यक है। इससे दोनों व्यापारिक साझेदार लाभान्वित होते हैं (यद्यपि अल्पावधि के लिए असमान रूप से)। इसलिए कम प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था अधिक लाभ प्रदान करती है।
चुनौतियाँ
- विदेश व्यापार नीति 2015-20 के अंतर्गत यह स्वीकार किया गया है कि भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता के समक्ष सबसे बड़ी बाधाएँ घरेलू स्तर पर विद्यमान हैं, जिनमें शामिल हैं:
- अवसंरचना संबंधी बाधाएँ,
- लेन-देन की उच्च लागत,
- जटिल प्रक्रियाएँ जैसे – अनेक व्यापार बाधाएँ, कोटा आदि।
- व्यापार सूचना प्रणाली की अपर्याप्तता एवं संस्थागत जड़ता।
- विकासशील देश सामान्यतः प्राथमिक उत्पादों जैसे कृषिगत वस्तुओं (जिनके मूल्य एवं मांग में लोचशीलता नहीं रहती है) का निर्यात करते हैं।
- पश्चिम में संरक्षणवाद के उद्भव के परिणामस्वरूप टैरिफ तथा नॉन-टैरिफ अवरोधों में वृद्धि हुई है।
- विकसित देशों द्वारा प्रदान की जाने वाली निर्यात सब्सिडी, प्राप्तकर्ताओं को अनुचित रूप से प्रतिस्पर्धी लाभ प्रदान करती है।
- क्षेत्रीय, बहुपक्षीय और द्विपक्षीय समूहों में देशों के मध्य सहयोग की कमी से विकासशील देशों की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भागीदारी प्रभावित होती है।
- WTO जैसे मंचों पर विकसित देशों द्वारा की जाने वाली लॉबिंग ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा विनियमों से सम्बंधित) को बाधित किया है, जिसके कारण विकासशील देशों के साथ चल रही वार्ता प्रभावित हुई है।
अनुशंसाएँ :
- टैरिफ संरचना को तर्कसंगत बनाने के साथ तकनीकी, स्वच्छता और फाइटोसेनेटरी मानकों के अनुपालन में वृद्धि करने वाली एक प्रगतिशील व्यापार नीति की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नीति को अपने व्यापार प्रोत्साहन लाभों को पुनर्संरचित करना चाहिए और इन्हें वित्तीय छूट प्रदान करने के स्थान पर निर्यातकों को प्रतिस्पर्धी बनाने में सहायक होना चाहिए।
- विशिष्ट क्षेत्र आधारित फोकस, जैसे- ‘राष्ट्रीय कृषि निर्यात नीति’ लाने का प्रयास जिसका प्रस्तावित लक्ष्य वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के साथ कृषि निर्यात की वर्तमान भागीदारी को 30 अरब अमेरिकी डॉलर से 60 अरब अमेरिकी डॉलर करना है।
- WTO के ट्रेड फैसिलिटेशन एग्रीमेंट (TFA) का त्वरित कार्यान्वयन किया जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त, एकीकृत विश्व (ग्लोबलाइज़्ड वर्ल्ड) द्वारा प्रदत्त अवसरों का पूर्ण लाभ उठाने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के खंडित संस्करण के विपरीत बहुपक्षीय संस्करण का सक्रिय रूप से समर्थन करना चाहिए। यह दीर्घावधिक समावेशी आर्थिक विकास में योगदान करने में सहायक होगा।
मुक्त व्यापार नीति क्या है मुक्त व्यापार के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क?
मुक्त व्यापार वह नीति है जिसमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पूरी स्वतंत्रता होती है। ऐसी स्थिति में दो देशों के बीच वस्तुओं के आयात-निर्यात में किसी प्रकार की बाधा नहीं होती। सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर अठारहवीं शताब्दी के तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बारे में जो प्रचलित सोच थी उसे आर्थिक विचारों के इतिहास में वणिकवाद के नाम से जाना जाता है। वणिकवाद बहुत ही संकीर्ण सोच थी। वणिकवाद के अनुसार निर्यात से देश की सम्पदा में वृद्धि होती है, जबकि आयात से देश की सम्पदा में कमी आती है। एडम स्मिथ ने इस मान्यता का खंडन किया और बताया की व्यापार से सभी देशों को लाभ होता है इसलिए उन्होंने मुक्त व्यापार की वकालत की। उनके अनुसार “मुक्त व्यापार की धारणा का उपयोग व्यापारिक नीति की उस प्रणाली को बंद करने के लिए किया जाता है जिसमें देश तथा विदेशी वस्तुओं में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता इसलिए न तो विदेशी वस्तुओं पर अनावश्यक कर लगाये जाते हैं और न ही स्वदेशी उद्योगों को कोई विशेष सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।” इस प्रकार, मुक्त व्यापार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तथा आंतरिक व्यापार में कोई अंतर नहीं करता। आंतरिक व्यापार में स्वतंत्रता होने पर कोई भी व्यक्ति सबसे कम क़ीमत वाले बाज़ार में वस्तु खरीद सकता है और उत्पादक अपनी वस्तु को उस बाज़ार में बेंच सकता है जहाँ उसे सबसे ज्यादा क़ीमत प्राप्त हो सके। ठीक उसी प्रकार मुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कोई भी देश सबसे कम क़ीमत पर वस्तु खरीद सकता है और साथ ही सबसे अधिक क़ीमत देने वाले देश में अपनी वस्तु बेंच सकता है।
मुक्त व्यापार के पक्ष में तर्क
एडम स्मिथ के आने से ही मुक्त व्यापार के पक्ष में हवा चल गई। उन्होंने इसके फायदे के बारे में इतना ठोस तर्क रखा कि सभी प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री इसके पक्ष में बोलने लगे। कुछ व्यापार शून्य व्यापार से बेहतर है, जबकि मुक्त व्यापार प्रतिबंधित या संरक्षित व्यापार से बेहतर है। मुक्त व्यापार के पक्ष में तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं-
1. उत्पादन के साधनों का उचित प्रयोग- मुक्त व्यापार में सभी देश केवल उसी वस्तु का उत्पादन करता है जिसमें उसे लागत सम्बन्धी लाभ प्राप्त हो। यह लाभ चाहे वह अपेक्षा न रखनेवाला हो या समानता और असमानता दिखानेवाला, उत्पादन के साधनों के उचित तथा सबसे कुशल प्रयोग को पूरा यक़ीन करेगा।
2. तकनीकी विकास को बढ़ावा- मुक्त व्यापार में देशों के बीच आपसी मुक़ाबला रहता है. इस मुक़ाबला के कारण सभी उत्पादक पूरी कोशिश करता है कि उसके उत्पाद की लागत कम हो जिससे कि वह कम कीमत पर अपने उत्पाद को बेंच सके। इसके लिए उत्पादक तकनीकी अनुसंधान व विकास को बढ़ावा देता है।
3. सामाजिक उत्पादन का अधिकतमीकरण- मुक्त व्यापार श्रम विभाजन और विशेषज्ञता को बढ़ाता है जिसके कारण कुल उत्पादन में वृद्धि होती है और साथ ही वस्तु का उत्पादन लागत भी गिरता है। समाज को पहले से कम कीमत' पर और साथ ही अधिक वस्तुओं का उपभोग करने का मौका मिलता है। वस्तुओं का मूल्य उनके सीमान्त लागत के बराबर हो जाता है। यह स्थिति अनुकूलतम उत्पादन की स्थिति को व्यक्त करता है। प्रत्येक देश की आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य अधिकतम सामाजिक लाभ की प्राप्ति होती है और यह मुक्त व्यापार में प्राप्त किया जा सकता है।
4. आयात सामग्री का वस्तुओं के मूल्यों में कमी- मुक्त व्यापार सस्ते आयात सामग्री वस्तुओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करता है। उपभोक्ताओं को ऐसे देश की वस्तु का उपभोग करने का मौका मिलता है जहाँ वह कम-से कम लागत पर प्राप्त किया जाता है। यह अलग बात है कि इस तर्क में देशी उत्पादकों के हितों की अवहेलना की गई है और साथ ही रोजगार के पहलू को भी नजरंदाज किया गया है।
5. एकाधिकारिक शोषण से मुक्ति- मुक्त व्यापार में प्रतियोगिता होने के कारण उपभोक्ता एकाधिकारिक शोषण से बच जाते हैं। प्रत्येक देश के उत्पादक को केवल देश के ही नहीं बल्कि विदेशी उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है जिसके कारण एकाधिकार का जन्म नहीं होता और फलस्वरूप उपभोक्ताओं को सस्ते मूल्य पर वस्तुएं प्राप्त होती है।
6. विश्व के सभी देशों के आर्थिक हितों की सुरक्षा- मुक्त व्यापार व्यवस्था से विश्व के सभी देशों के हितों की रक्षा होती है। मुक्त व्यापार के इसलिये आयात करनेवाले देश और निर्यात करने वाले देश दोनों को लाभ प्राप्त होता है। मुक्त व्यापार में एक देश दूसरे देश पर निर्भर होता है इसलिये उन देशों के बीच सहयोग एवं सद्भावना जागृत होती है।
मुक्त व्यापार विपक्ष में तर्क
मुक्त व्यापार की अपनी सीमाएं हैं, जिसके कारण हमें अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होता। अनुभव तो यही बताता है कि जैसे-जैसे दुनिया मुक्त व्यापार की और बढ़ रही है, विकसित और विकासशील देशों के बीच की खाई और चैड़ी होती जा रही है. बहुराष्ट्रीय कम्पनिओं का जाल विकासशील देशों में फैलता जा रहा है। उनके यहाँ के घरेलू उद्योग इन बहुराष्ट्रीय कम्पनिओं के आगे मुकाबला करने में कठिनाई का अनुभव कर रहे है। कई उद्योग तो बहुराष्ट्रीय कम्पनिओं के सामने अपना अस्तित्व ही खो चुके हैं। ऐसे में अब दुबारा इन देशों में संरक्षण के उपाय की बात की जा रही है. मुक्त व्यापार की निम्नलिखित सीमाएं हैं-
1. मुक्त व्यापार ख़याली मान्यताओं पर आधारित है- मुक्त व्यापार की वकालत करनेवाले एडम स्मिथ और अन्य प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री ऐसी मान्यताएं ले बैठे जो वास्तविकता से दूर हैं। जैसे स्थिर लागत की दशा का उत्पादन, साधन की गतिशीलता की मान्यता आदि शायद ही देखने को मिलता है।
2. पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता पर आधारित- मुक्त व्यापार से प्राप्त होने वाले लाभ वस्तु तथा साधन बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता पर आधारित है, जो शायद ही उपलब्ध हो पाती है। इसके कारण साधनों का अनुकूलतम आवंटन और वस्तुओं का अनुकूलतम वितरण नहीं हो पाता जिसके कारण मुक्त व्यापार से वो स्थिति प्राप्त नहीं हो पाती जो दावा किया जाता है।
3. प्रारंभिक उद्योग के लिए अनुपयुक्त- मुक्त व्यापार प्रारंभिक उद्योग के लिए नामुनासिब है क्योंकि ऐसे उद्योग मुक़ाबला को झेल पाने में योग्य नहीं होते। फ्रेडरिक लिस्ट ने अपने प्रारंभिक उद्योग तर्क में इस बात को बहुत सरल तरीके से बताया है और ऐसे उद्योगों को प्रारंभ में संरक्षण देने की वकालत की है।
4. मांग और पूर्ति का पूरी तरह लोचदार होना आवश्यक- मुक्त व्यापार इस मान्यता पर आधारित है कि लंबे समय में मांग और पूर्ति पूरी तरह लोचदार हो जाते हैं जिसके कारण उद्योगों की लागतें रुक जाती है. किन्तु वास्तविक जगत में ऐसा संभव नहीं।
NCERT Solutions for Class 12 Geography India: People and Economy Chapter 11 (Hindi Medium)
NCERT Solutions for Class 12 Geography India: People and Economy Chapter 11 International Trade (Hindi Medium)
These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 12 Geography. Here we have given NCERT Solutions for Class 12 Geography India: People and Economy अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है Chapter 11 International Trade.
अभ्यास प्रश्न (पाठ्यपुस्तक से)
प्र० 1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए।
(i) दो देशों के मध्य व्यापार कहलाता है|
(क) अंतर्देशीय व्यापार
(ख) बाह्य व्यापार
(ग) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
(घ) स्थानीय व्यापार
(ii) निम्नलिखित में से कौन-सा एक स्थ्लबद्ध पोताश्रय है?
(क) विशाखापट्टनम
(ख) मुंबई
(ग) एन्नोर
(घ) हल्दिया
(iii) भारत का अधिकांश विदेशी व्यापार वहन होता है
(क) स्थल और समुद्री द्वारा
(ख) स्थल और वायु द्वारा
(ग) समुद्र और वायु द्वारा
(घ) समुद्र द्वारा
(iv) वर्ष 2010-11 में निम्नलिखित में से कौन-सा भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था
(क) यू०ए०ई०
(ख) चीन
(ग) जर्मनी ।
(घ) स०रा० अमेरिका
उत्तर:
(i) (ग) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
(ii) (क) विशाखापट्टनम
(iii) (ग) समुद्र और वायु द्वारा
(iv) (घ) स० रा० अमेरिका
प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।
(i) भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(i) भारत के व्यापारिक संबंध विश्व के अधिकांश देशों एवं प्रमुख व्यापारिक गुटों के साथ हैं।
(ii) अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण परंपरागत वस्तुओं के व्यापार में गिरावट दर्ज की गई है।
(iii) भारत के निर्यात की तुलना में आयात को मूल्य अधिक होने से व्यापार घाटे में लगातार वृद्धि हो रही है।
(ii) पत्तने और पोताश्रय में अंतर बताइए।
उत्तर: पत्तन-समुद्रतट पर जलपोतों के ठहरने का वह स्थान जहाँ पर पानी के छोटे-बड़े जहाज़ों में सामान लादने तथा उतारने की सभी सुविधाएँ होती हैं। साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है ही सामान को सुरक्षित रखने के लिए गोदामों की भी सुविधा होती है। पत्तन व्यापार के द्वार होते हैं जो अपनी पृष्ठभूमि से सड़कों व रेलमार्गों से अच्छी तरह जुड़े होते हैं। जबकि पोताश्रय कटे-फटे समुद्रतट व खाड़ियों पर प्राकृतिक पोताश्रय स्थल होते हैं। जहाँ जहाज़ समुद्री लहरों व तूफानों से सुरक्षा प्राप्त करते हैं अथवा कुछ समय आराम करने की दृष्टि से लंगर डाल लेते हैं तथा अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़ जाते हैं।
(iii) पृष्ठ प्रदेश का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: पृष्ठ प्रदेश (hinter land) किसी पत्तन का वह प्रभाव क्षेत्र होता है जो रेल व सड़क मार्गों द्वारा पत्तन से अच्छी तरह जुड़ा होता है। इस क्षेत्र के उत्पाद निर्यात के लिए पत्तन तक भेजे जाते हैं तथा आयातित सामान विक्रय/उपभोग के लिए यहाँ वितरित कर दिया जाता है।
(iv) उन महत्त्वपूर्ण मदों के नाम बताइए जो भारत विदेशों से आयात करता है।
उत्तर: पेट्रोलियम व पेट्रोलियम उत्पाद भारत के प्रमुख आयात हैं। इनके अलावा मशीनरी, गैरधात्विक खनिज, अलौह धातुएँ, मोती व उपरत्न, सोना व चाँदी, उर्वरक तथा अन्य रसायनों का भी आयात किया जाता है।
(v) भारत के पूर्वी तट पर स्थित पत्तनों के नाम बताइए।
उत्तर: भारत के पूर्वी तट अर्थात् बंगाल की खाड़ी के प्रमुख पत्तन हैं-कोलकाता, हल्दिया, पाराद्वीप, विशाखापट्टनम, एन्नौर, चेन्नई व तूतीकोरिन।
प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
(i) भारत में निर्यात और आयात व्यापार के संयोजन का वर्णन कीजिए।
उत्तर: भारत के विदेशी व्यापार में अनेक वस्तुओं का निर्यात व आयात किया जाता है। भारत से निर्यात की वस्तुएँ हैं-कृषि एवं समवर्गी उत्पाद, अयस्क एवं खनिज, विनिर्मित वस्तुएँ, मणि-रत्न एवं आभूषण, इंजीनियरिंग सामान, इलेक्ट्रॉनिक सामान वस्त्रादि, हस्तशिल्प, कालीन, चमड़े से बने उत्पाद तथा पेट्रोलियम उत्पाद आदि। जबकि प्रमुख आयातित वस्तुएँ हैं-पेट्रोलियम अपरिष्कृत एवं उत्पाद, व्यावसायिक उपस्कर आदि; स्वर्ण एवं चाँदी; मशीनरी; मोती, बहुमूल्य एवं अल्पमूल्य रत्न; गैर-धात्विक खनिज विनिर्माण; दालें, लोहा एवं स्टील; खाद्य तेल; धातुमयी अयस्क तथा छीजन; चिकित्सीय एवं फार्मा उत्पाद; अलौह धातुएँ; उर्वरक; लुगदी; अन्य वस्त्र धागे, कपड़े इत्यादि, रासायनिक उत्पाद; कोयला, कोक तथा इष्टिका आदि। भारत के आयात व निर्यात व्यापार संयोजन को इस दृष्टि से भी आकलन किया जा सकता है कि सन् 2004-05 में भारत का आयात मूल्य 4810.5 अरब रुपये का था जबकि निर्यात मूल्ये कुल 3560.5 अरब रुपये मूल्य का था। इस तरह भुगतान संतुलन बिल्कुल भी भारत के पक्ष में नहीं है।
(ii) भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रकृति में लगातार बदलाव महसूस किए जा रहे हैं जिन्हें निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट किया होता है
(1) भारत का कुल विदेशी व्यापार 1950-51 में 1, 214 करोड़ रुपये से बढ़कर 2004-05 में 8, 37, 133 करोड़ तथा 2006-07 में 13, 84, 368 करोड़ रुपये हो गया।
(2) निर्यात की तुलना में आयात में तेजी से वृद्धि हुई है। 1950-51 में आयात 608.8 करोड़ रुपये से बढ़कर 2004-05 में 4,81,064.0 करोड़ रुपये तथा 2006-07 में 820,568.0 करोड़ रुपये हो गया। जबकि निर्यात मूल्य 606.0 करोड़ रुपये से बढ़कर 2004-05 में 356,069.0 करोड़ रुपये तथा 2006-07 में 5,63,800.0 करोड़ रुपये हो गया।
(3) भारत के आयात तथा निर्यात के मूल्यों में लगातार अंतर बढ़ता ही जा रहा है जिससे व्यापार संतुलन विपरीत अर्थात् भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल है।
(4) विश्व के कुल निर्यात व्यापार में भारत की भागीदारी भी लगातार कम होती जा रही है। 1950 में यह 2.1% थी, अब घटकर मात्र 1% रह गयी है। इसके लिए अनेक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है
(क) विश्व बाजार में रुपये का अवमूल्यन,
(ख) उत्पादन में धीमी प्रगति,
(ग) घरेलू उपभोग में वृद्धि,
(छ) विश्व बाज़ार में कड़ी प्रतिस्पर्धा आदि।
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