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अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष
इसे सुनेंरोकें_ ‘व्यापार’ शब्द का अर्थ वस्तुओं तथा सेवाओं का लेन-देन करना है और जब यह लेन-देन विभिन्न देशों के बीच होता है तब इसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। सभी देश अपने आप में आत्मनिर्भर नहीं होते। प्रकृति ने विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष देशों को विभिन्न संसाधनों से सम्पन्न किया है।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंविभिन्न देशों में सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण, रहन-सहन, रीति-रिवाज, रुचियाँ भिन्न-भिन्न हैं। इस सांस्कृतिक भिन्नता के कारण उत्पादन एवं माँग भी भिन्न-भिन्न है। (vi) जनसंख्या की भिन्नता- जनसंख्या का असमान वितरण व्यापार को प्रभावित करता है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार – 5 मुख्य इंटरनेशनल बिजनेस को प्रभावित करने वाले कारक: संस्कृति, आर्थिक प्रणाली, आर्थिक स्थिति, विनिमय दरें और राजनीतिक जोखिम और विनियम

  • संस्कृति
  • आर्थिक व्यवस्था
  • आर्थिक स्थिति
  • विनिमय दर
  • राजनीतिक जोखिम और नियम

सूक्ष्म अर्थशास्त्र के उपयोग और सीमा क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसूक्ष्मअर्थशास्त्र (ग्रीक उपसर्ग माइक्रो – अर्थ “छोटा” + “अर्थशास्त्र”) अर्थशास्त्र की एक शाखा है जो यह अध्ययन करता है कि किस प्रकार अर्थव्यवस्था के व्यक्तिगत अवयव, परिवार एवं फर्म, विशिष्ट रूप से उन बाजारों में सीमित संसाधनों के आवंटन का निर्णय करते हैं, जहां वस्तुएं एवं सेवाएं खरीदी एवं बेचीं जाती हैं।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार कितने प्रकार के होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंचार प्रकार के अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय शुरू हो सकते हैं: 1. निर्यात 2. लाइसेंसिंग 3. फ़्रैंचाइजिंग 4.

सूक्ष्म अर्थशास्त्र की सीमाएं क्या है?

इसे सुनेंरोकेंव्यष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएं या दोष (vyasti arthashastra ki simaye) व्यष्टि अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को समझने मे असमर्थ है, क्योंकि इसमे केवल व्यक्तिगत इकाइयों का ही अध्ययन किया जाता है। इसमे सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को महत्व नही दिया जाता है।

सूक्ष्म अर्थशास्त्र के उपयोग क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसूक्ष्म अर्थशास्त्र यह परीक्षण करता है कि ये निर्णय एवं व्यवहार किस प्रकार वस्तुओं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष एवं सेवाओं की आपूर्ति एवं मांगों को प्रभावित करते हैं, जो मूल्यों का निर्धारण करती हैं और किस प्रकार, इसके बदले में, मूल्य, वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति एवं मांगों को निर्धारित करती है।

व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष की शर्तें का क्या महत्व है?

इसे सुनेंरोकेंयदि किसी देश के लिये व्यापार की शर्ते अधिक अनुकूल हैं तो वह निर्यात की एक निश्चित मात्रा से अपेक्षाकृत अधिक वस्तुओं का आयात कर सकती है जिससे वहाँ के लोगों का जीवन स्तर ऊँचा होगा। प्रतिकूल व्यापार की शर्तों में इसके विपरीत प्रभाव होता है।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार कितने प्रकार का होता है?

व्यापार के कितने प्रकार होते हैं?

  1. आंतरिक व्यापार- जब दो या दो से अधिक व्यक्ति फर्म संगठन या संगठन राज्य देश की सीमा के भीतर वस्तुओ का आदान प्रदान करते हैं तो उसे आंतरिक व्यापार कहते हैं। जैसे जूट पश्चिम बंगाल मे कपास महाराष्ट्र और गुजरात में गन्ना संकेद्रित हैं।
  2. अंतराष्ट्रीय व्यापार- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, व्यापार का ही एक स्वरूप है।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार से देश कैसे लाभ प्राप्त करता है?

व्यापार के प्रकार

जब दो या दो से अधिक व्यक्ति फर्म संगठन या संगठन राज्य देश की सीमा के भीतर वस्तुओ का आदान प्रदान करते हैं तो उसे आंतरिक व्यापार कहते हैं। जैसे जूट पश्चिम बंगाल मे कपास महाराष्ट्र और गुजरात में गन्ना संकेद्रित हैं। अत: अन्य राज्यों की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये दूसरे उत्पादक राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, व्यापार का ही एक स्वरूप है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ है राष्ट्रों के बीच वस्तुओं तथा सेवाओं का खरीद और बिक्री से है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एक ऐसा तरीका है जोकि वस्तुओं, सेवाओं तथा संसाधनों के माध्यम से कई देशों को आपस में जोडता है। बाजार का आकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से बढ़ता है।

विदेशी व्यापार किसे कहते हैं इसका क्या महत्व है ?

मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त हैं। कुछ आवश्यकता की वस्तुए तो देश में ही प्राप्त हो जाती है तथा कुछ वस्तुओं को विदेशों से मंगवाना पड़ता है। भोगोलिक परिस्थितियों के कारण प्रत्येक देश सभी प्रकार की वस्तुए स्वयं पैदा नहीं कर सकता है। किसी देश में एक वस्तु की कमी है तो दूसरे देश में किसी दूसरी वस्तु की। इस कमी को दूर करने के लिए विदेशी व्यापार का जन्म हुआ है।


दो देशों के मध्य होने वाले वस्तुओं के परस्पर विनिमय या आदान’-प्रदान को विदेशी व्यापार कहते हैं। जो देश माल भजेता है उसे निर्यातक एवं जो देश माल मंगाता है उसे आयातक कहते हैं एवं उन दोनों के बीच होने वाल े आयात-निर्यात को विदेशी व्यापार कहते हैं।

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